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बेहद शर्मनाक! : फिरोज जैसे हैवानों का तो सामाजिक बहिष्कार होना ही चाहिए

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जेब अख्तर 


राजधानी में एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो रहा है। इसमें एक मनचला स्कूल जा रही छात्रा से छेड़खानी करता हुआ दिखाई दे रहा है। सीसीटीवी में कैद इस वीडियो के फुटेज के आधार पर पुलिस ने छ़ेड़खानी करने वाले आरोपी की पहचान कर ली है। रांची पुलिस की ओऱ से कहा गया है कि इस मनचले के बारे में सूचना देने वाले को 10 हजार रुपये का इनाम मिलेगा और सूचना देने वाले व्यक्ति की पहचान को गुप्त रखा जायेगा। अब देखना होगा आगे क्या होता है। लेकिन एक बात जो तय है, वो ये है इस प्रकरण से मुस्लिम समाज की छवि को धक्का पहुंचा है। हम शर्मसार हुए हैं। 


क्योंकि छात्रा से छेड़खानी वाले आरोपी की पहचान मुस्लिम के तौर पर की गयी है। इस मामले में पुलिस ने तो अपनी जवाबदेही तय कर ली है औऱ आगे भी इसे पूरा भी करेगी, इसमें कोई शक या सुब्हा नहीं है। होना तो ये चाहिए कि मुस्लिम समाज के अलमबरदार खुद इस आरोपी को पकड़कर पुलिस के सुपुर्द करें। हालांकि इस दिशा में पहल भी हो गयी है। कुछ मुस्लिम अदारों औऱ संगठन इस छेड़खानी और आरोपी युवक के खिलाफ गोलबंद हो गये हैं। इस गोलबंदी का ही नतीजा है कि एक बैठक कर आरोपी युवक की गिरफ्तारी में पुलिस को हर मुमकिन सहयोग की बात कही गयी है। इस पहल और गोलबंदी का स्वागत किया जाना चाहिए। 


अब सवाल है कि इस तरह की घटनाओं पर लगाम कैसे लगे। अगर इसी मामले की बात करें तो इससे एक कदम औऱ आगे बढकर ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिये। ये अधिक कारगर साबित होगा। ऐसा भी नहीं है कि किसी अपराधी या किसी गंभीर गलती के लिए मुस्लिम समाज की ओऱ से दोषी का सामाजिक बहिष्कार नहीं किया गया है। बल्कि कुछ मामलों में तो सामाजिक बहिष्कार के साथ दोषी का आर्थिक बहिष्कार भी किया गया है। अभी बहुत दिन नहीं हुए जब मध्य प्रदेश के मंदसौर में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने गो हत्याह और गो तस्करों का सामाजिक बहिष्कार किया था। इसके लिए बकायदा जुमे के दिन मस्जिद में बैठक की गयी। शुक्रवार की नमाज के बाद सरपंच, अंजुमन सदर सहित मुस्लिम समाज के लोगों ने गो तस्करी और गोकशी से जुड़े गांव के लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला लिया। ये फैसला आज तक कायम है। मुस्लिम समाज के लोगों ने खुलकर कहा कि गो तस्करी से समाज की छवि को दाग लग रहा है। इसे रोका जाना चाहिये। 


इसी तरह की दूसरी मिसाल इसी साल अक्तूबर महीने में देहरादून में पेश आयी। यहां एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें दो मुस्लिम युवकों को कथित तौर पर मसूरी क्षेत्र में चाय के बर्तन में थूकते हुए देखा गया। इन दोनों के खिलाफ भी मुस्लिम समाज मुखर हुआ औऱ इनका न सिर्फ सामाजिक बल्कि कुछ स्थानों पर इनका आर्थिक बहिष्कार भी किया गया। इन दोनों युवकों के नाम नौशाद व हसन हैं। पुलिस ने इनको गिरफ्तार भी किया। इस मामले में देहरादून में मुस्लिम गुरुओं की एक बड़ी बैठक बुलाई गयी। इसमें मौलाना आरिफ ने सार्वजनिक मंच से बयान देकर कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। बाद में पूरे इलाके में दोनों युवकों का सामाजिक बहिष्कार करने का ऐलान किया गया। 


बहहहाल, इन पहलकदमियों के अलावा मुस्लिम समाज को ये भी सोचने की जरूरत है कि ऐसे लोग हमारे समाज में कहां से आ जाते हैं। ऐसी जहनीयत औऱ मानसिकता हमारे नौजवानों में क्यों बन जाती है। इस सवाल का जवाब जानने के लिए उन तमाम पहलुओं पर गौर करना होगा जिससे व्यक्तित्व औऱ शख्सीयत का निर्माण होता है। एक सोच और संस्कार का निर्माण होता है। अफसोस है कि आज भी हम शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं। अगर हम आधुनिक या मजहबी तालीम को भी (जिसकी नसीहत हमें हर दिन दी जाती है) कुछ फीसद भी अपना लें, उनको मानें तो बड़ा बदलाव हो सकता है। हम अपने सुधार के लिए किसी पुलिस या कोर्ट पर क्यों निर्भर रहें। इस दिशा में वे अपनी भूमिका निभायेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इससे समाज के प्रति हमारी अपनी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। बल्कि राजधानी में 

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