द फॉलोअप डेस्कः
प्रकृति पर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से होती है। इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं, जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नए साल का सूचक मानते हैं और पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। सरहुल आदिवासियों का त्योहार में से एक है। आदिवासी समुदाय के लोग इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि अपने सारे शुभ कार्य की शुरुआत इसी दिन से करते हैं। प्रकृति पर्व सरहुल का आज (बुधवार) उपवास है। कल यानी 11 अप्रैल (गुरुवार) को शोभायात्रा निकलेगी।
रांची में बसने वाले आदिवासियों की सरलता और प्रकृति के प्रति अनोखा प्रेम इसकी झलक इनकी परंपरा में देखने को मिलती है। जो किसी और सभ्यता संस्कृति में देखने को नहीं मिलती. यही कारण है कि आदिवासियों को प्रकृति का पूजक कहा जाता है। इस बार तीन दिवसीय महापर्व पूजा की शुरुआत बुधवार से उपवास के साथ शुरू हो गयी है। आदिवासियों का त्योहार सरहुल को लेकर गांव के पहान विशेष अनुष्ठान करते हैं। जिसमें ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो। इस क्रम में पहान सरना स्थल में मिट्टी के घड़े में पानी रखते हैं पानी के स्तर से ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है।
पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पाहन घर-घर जाकर फूलखोंसी करते हैं ताकि उस घर और समाज में खुशी बनी रहे। झारखंड में सरहुल महापर्व बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है। जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों में बसने वाले आदिवासी समाज के लोग बड़े ही उत्साह के साथ भाग लेते हैं। इस दौरान पूजा के बाद शोभा यात्रा में विभिन्न टोला मोहल्ला से जुलूस निकाले जाते हैं। जिसमें आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को झांकियों में दर्शाया जाता है।