द फॉलोअप डेस्क
जीवन में कभी भी सीखने में संकोच नहीं करें। दूसरे के श्रेष्ठ गुणों का अनुकरण करें। अच्छे मार्ग पर चलें। यही एक उत्तम और सफल विद्यार्थी के लक्षण हैं। सीखने की कभी कोई उम्र नहीं होती। जीवन में अधिक से अधिक ज्ञान हासिल करने की भूख सदैव बनी रहनी चाहिए। तब आप लोग नई-नई ऊंचाइयों को हासिल कर पाएंगे। यह बातें गुरुवार को राज्यपाल रमेश बैस ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कही। कांके स्थित विवि परिसर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उपाधि ग्रहण कर रहे सभी 1139 विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा की विश्वविद्यालय के लिए भी यह एक विशेष दिन है। क्योंकि, विद्यार्थियों की उपलब्धियों में ही विश्वविद्यालय की उपलब्धि शामिल है।
दीक्षांत समारोह हर विद्यार्थी के लिए होता है यादगार
दीक्षांत समारोह के संबंध में राज्यपाल ने कहा कि यह हर विद्यार्थी के लिए एक यादगार दिन होता ह। यह दिन उन्हें अपनी उपलब्धियों पर गर्व करवाता है। विश्वविद्यालय के लिए भी यह एक विशेष दिन है क्योंकि विद्यार्थियों की उपलब्धियों में ही विश्वविद्यालय की उपलब्धि शामिल है। उन्होंने उपाधि ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों को नसीहत देते हुए कहा की आप लोगों ने निश्चित रूप से अपना भविष्य और लक्ष्य तय कर लिया होगा। अपने आगे की रणनीति बना ली होगी। आप सब जानते हैं कि हर नया दौर नई चुनौतियां और नए अवसर लेकर आता है। इन अवसरों का लाभ आप अपनी रुचि एवं प्रतिभा के अनुसार उठाएंगे और विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला यहसं से प्राप्त ज्ञान, शिक्षकों के मार्गदर्शन एवं अपने अनुभव से कुशलतापूर्वक करेंगे।
बीएयू की रैंकिंग पर जताई चिंता
राज्यपाल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा जारी नेशनल रैंकिंग में विश्वविद्यालय के पिछड़े स्थान पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से जारी नेशनल रैंकिंग में वर्ष 2017 में जहां 53वां स्थान मिला था, वहीं वर्ष 2018 में यह विश्वविद्यालय देश के टॉप 60 कृषि विश्वविद्यालयों की सूची से भी बाहर हो गया। हालांकि, वर्ष 2020 में इसे 58वां स्थान प्राप्त हुआ। लेकिन, क्या कारण है कि वर्ष 1981 में स्थापित यह संस्थान टॉप 20 या टॉप 30 में नहीं आ पाया है? कहीं इसका कारण शिक्षकों की कमी, पठन-पाठन में गुणवत्ता का अभाव, शोध में गुणवत्ता की कमी तो नहीं? फिर ये भी देखना होगा कि आईसीएआर ने रैंकिंग के लिए जो मापदंड तय किए हैं जैसे कि आधारभूत संरचना, शिक्षकों, वैज्ञानिकों और कर्मचारियों की स्थिति, विद्यार्थियों की संख्या, प्लेसमेंट, शोध कार्य, शिक्षकों और वैज्ञानिकों का विदेश दौरा, नेशनल और इंटरनेशनल फंड की स्थिति, किसानों के हित और सामाजिक दायित्व के तहत कार्य इत्यादि का किस हद तक अनुकरण हो रहा है? मुझे उम्मीद है विश्वविद्यालय इन सब मुद्दों पर गंभीरता से विचार और मंथन करेगा।
किसानों के साथ बैठकर कदम उठाने की दी सलाह
राज्यपाल ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें किसानों के साथ बैठकर कदम उठाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भारत में कृषि अनुसंधान अभी भी अन्य देशों की तुलना में कम है। जो भी कृषि क्षेत्र में शोध किये जाते हैं या होते हैं उसके परिणाम गरीब किसानों को उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। मेरा मानना है कि आप में से प्रत्येक व्यक्ति अगर 5 गांव में जाकर कृषि कार्य को निकट से देखें, किसानों से संवाद करें और उनकी समस्या को जानें-समझें और समाधान की दिशा में कोशिश करें तो कृषि क्षेत्र में निश्चय ही बदलाव आयेगा।
झारखंड की बड़ी आबादी कृषि पर आश्रित
झारखंड की पहचान खनिज-संपन्न राज्य की है। मगर राज्य की बड़ी आबादी कृषि पर आश्रित है। इसको लेकर राज्यपाल ने कहा कि सिंचाई सुविधा के अभाव में अधिकांश भूमि में सिर्फ एक ही फसल उगाई जाती है। जल संरक्षण एवं जल प्रबंधन के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है। इस तकनीक को अभियान के रूप में चला कर हमें जन-जन तक पहुंचाना होगा׀ वहीं, राज्यपाल ने कहा की झारखंड अनाज के मामले में अभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। हालांकि, गर्व की बात है कि सब्जी उत्पादन के मामले में न सिर्फ हम आत्मनिर्भर है बल्कि पड़ोसी राज्यों को निर्यात भी करते हैं। कार्यक्रम के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक सहित अन्य मौजूद थे।
हमारे वाट्सअप ग्रुप से जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: https://chat.whatsapp.com/EUEWO6nPYbgCd9cmfjHjxT