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गोड्‌डा लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस में अभी से मचा घमासान, कई नेता ठोंक रहे हैं ताल

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द फॉलोअप डेस्क
अगामी लोकसभा चुनाव को लेकर हर दल अपनी-अपनी तैयारी में जुट गया है। दलों के पास अपनी-अपनी रणनीति है
लेकिन, झारखंड कांग्रेस में सीट को लेकर आपसी मनमुटाव है। झारखंड के 14 लोकसभा सीट को लेकर पहले से ही गठबंधन दलों में कुछ साफ नहीं है। जेएमएम जहां जमीनी हकीकत को देखकर सीट बंटवारे की बात कर रहा है, वहीं कांग्रेस को यकीन है कि लोकसभा में उसे बड़ा हिस्सा मिलेगा। फिलहाल आरजेडी इस बात को मान कर शांत है कि पलामू, चतरा के बाद कोडरमा में तो हम बाकी सभी दलों से बेहत हैं। एक साल का वक्त बचा है लेकिन अब तक सीट बांटवारा पर की चर्चा नहीं हो रही है। जबकि, गठबंधन दलों को अपनी सीट साफ होनी चाहिए ताकी आगे की रणनीत बनाई जा सके।

गोडा लोकसभा बना जी का जंजाल
इरफान अंसारी ने अपने पिता को सबसे बेहत्तर उम्मीदवार बता कर पार्टी के अंदर दावा ठोक दिया है। विधायक इरफान का दावा है कि राज्य में मुसलमानों की संख्या 18 प्रतिशत है लिहाजा कम से कम एक सीट पर तो मुसलमान उम्मीदवार के तौर पर होना चाहिए। वहीं, ईडी के छापे के बाद से ही विधायक प्रदीप यादव भी मीडिया और पार्टी में इस बात को लेकर लगातार बोल रहे हैं कि उनके पीछे केंद्रीय ऐजेंसी इसलिए पड़ी है कि भाजपा को डर है कि प्रदीप यादव ही उनके सांसद नीशिकांत दुबे को हरा सकता है। मीडिया में इस तरह का बयान देकर प्रदीप ने एक तीर से दो निशाना साधा है। उन्होने अपने आप को निर्दोष बताते हुए गोड्डा लोकसभा सीट पर दावा भी ठोंक दिया है। वहीं पार्टी की एक और विधायक दीपिका पांडेय सिंह अंदर ही अंदर पूरे लोकसभा क्षेत्र में भ्रमण कर रही हैं। वे बिना कुछ कहे चुनावी तैयारी में जुट गई हैं। मतलब इस सीट पर एक अनार सौ बीमार वाली कहावत पार्टी में दिख रही है।

 

जेएमएम के लिए भी महत्वपूर्ण है गोड्डा सीट
राज्य में सबसे अधिक विधायकों के साथ सीएम और स्पीकर की कुर्सी पर बैठी जेएमएम के लिए भी गोड्डा का सीट काफी मायने रखता है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सीधी चुनौती देने वाले एक मात्र विपक्ष के नेता गोड्डा का सांसद निशिकांत दुबे हैं। पार्टी उनसे आर-पार की मूड में हमेशा रहती है। इस लिहाज से जेएमएम ने भी इस बार इस सीट पर अपना दावा किया है। इतना ही नहीं कई जेएमएम नेताओं का कहना है कि इस लोकसभा सीट पर चाहे कुछ हो जाए निशिकांत को जीतने नहीं दिया जाएगा। पार्टी किसी भी सूरत में इस सीट पर जीत चाहती है, ताकी सीएम हेमंत सोरेन को चुनौती देने वाले का मुह बंद किया जा सके। ये सब तभी हो पाएगा जब पार्टी का अपना उम्मीदवार मैदान में हो। इतना ही नहीं खूंटी सीट को लेकर भी जेएमएम दबी जुबान से ही सही लेकिन अपना दावा पेश कर रही है।

घर का भेदी लंका ढाए मुहावरे पर कर रही है काम
सीएम हेमंत सोरेन के शपथ लेने के बाद से ही निशिकांत दुबे उन पर हमलावर हैं। एक के बाद एक कई आरोपों के साथ निशिकांत हेमंत सोरेन को अक्षम मुख्यमंत्री बताते हैं। उन्हे नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोडते हैं। जेएमएम अपने कार्यकारी अध्यक्ष का बदला निशिकांत से इसी लोकसभा चुनाव मे लेना चाहती है। पार्टी के कई नेता इसके लिए विभिषण की तालाश में हैं। सूत्रों की माने तो विभिषण की तालाश भी खत्म हो गई है। जेएमएम ने भाजपा के पूर्व विधायक और निशिकांत का खिलाफत करने वाले राज पलिवार को इसके लिए चुना है। वे पार्टी के लिए हर तरह से उपयुक्त हैं। वे स्थानीय भी है और ब्राहम्ण समाज से भी आते हैं। इतना कि नहीं इसी लोकसभा के दो विधानसभा सीटों पर उनकी पकड़ भी मजबूत है। हालांकि राज पलिवार भाजपा छोड़ेगे या नहीं इस बात को लेकर साफ-साफ कोई नहीं कुछ कह रहा
, लेकिन मधुपुर उपचुनाव के बाद से भाजपा से उन्होंने बिना इस्तीफा दिए दूरी जरूर बना ली है। मधुपुर सीट पर टिकट कटने का भी मुख्य कारण राज पलिवार निशिकांत को ही मानते हैं। ऐसे में उन्हें नाराजगी का वास्ता देकर जेएमएम तीर-धनुष थमाना चाहती है। इससे एक तीर से दो दो राजनीतिक दुश्मन का खात्मा राजनीतिक तरीके से हो सकेगा। सीट बंटवारे के समय भी ये बात सामने आएगी कि अगर कांग्रेस के अंदर इतना मतभेद है तो क्यों ना इस सीट को जेएमएम को ही दे दिया जाए। ताकी, पार्टी के अंदर कोई घमासान ना हो।

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