द फॉलोअप डेस्क
भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है। ऐसे में आधुनिक भारत में शहरों को स्मार्ट और गांवों को आदर्श बनाया जा रहा है। लेकिन, इसी भारत में आदिवासियों को उनका हक, अधिकार और सशक्त बनाने को लेकर 25 साल पहले जिस झारखंड राज्य का गठन हुआ, उसी झारखंड के गांवों में रहने वाले आदिवासी आज भी अपने जीवन यापन के लिए मूलभूत सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के गोइलकेरा प्रखंड अंतर्गत कुईड़ा पंचायत में चारों ओर से जंगलों और पहाड़ों से घिरे नक्सल प्रभावित मेरेलगड़ा गांव में रहने वाले आदिवासी परिवार के लोगों की, जो आज भी बुनियादी सुविधाओं का रोना रो रहे हैं।
मेरेलगड़ा गांव में जीवन जीने के लिए आवश्यक मूलभूत बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। आधुनिक भारत के इस गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है। इस गांव में रहने वाले आदिवासी आज भी पेयजल की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। गांव में केवल बिजली और पेयजल ही नहीं, बल्कि पक्की सड़क भी नहीं है। गांव में प्रवेश करने के लिए भी अब तक कोई मुख्य सड़क नहीं है। पगडंडियों के रास्ते ही इस गांव का सफर तय किया जा सकता है। इसलिए गांव तक कोई वाहन भी नहीं पहुंचता है। ऐसे में गांव में किसी के बीमार होने पर उन्हें ग्रामीणों के द्वारा आज भी खाट में लिटाकर कच्ची सड़क के रास्ते गांव से बाहर ले जाया जाता है। जिसके बाद लिंक रोड पहुंचने पर वाहन से मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जाता है। इसके अलावा अन्य शासन की योजनाएं भी गांव की पहुंच से कोसों दूर हैं। जिसकी वजह से यहां के ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बीच जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं।
मेरेलगड़ा गांव में लगभग 30 से 40 आदिवासी घर हैं, जहां की आबादी लगभग 350 के करीब है। इस गांव में एक भी चापाकल नहीं है। ऐसे में यहां के ग्रामीण आधा किलोमीटर दूर एक नाले के किनारे स्थित एक डांडी-चुआ से पानी छानकर पीते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि गर्मी के समय जब डांडी-चुआ भी सूख जाता है तो गांव के लोग सुबह 3 बजे डांडी-चुआ से रिसता हुआ पानी निकालने के लिए लाइन लगा देते हैं। यहां के लोगों की यह मजबूरी आदत बन चुकी है। यही नहीं, यहां के ग्रामीण सालों भर इस चुआ में जमा होने वाले गंदे पानी को पीकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में पेयजल की समस्या को लेकर उन्होंने कई दफा गांव के मुखिया से बोरिंग कराने के लिए कहा। लेकिन, उनकी समस्या को यहां कोई सुनने वाला नहीं है। मेरेलगड़ा गांव के मुंडा दोराय गोडसोरा और अंगद गोप का कहना है कि गांव में बिजली भी नहीं है, ना सड़क और न ही पेयजल। ऐसे में भारी समस्या के बीच गांव के ग्रामीण अपना जीवन बसर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस गांव में केवल चुनाव के वक्त कुछ जनप्रतिनिधि ग्रामीणों से वोट मांगने पहुंचते हैं। समस्याओं को दुरुस्त करने का वादा भी करते हैं। लेकिन, बाद में सभी भूल जाते हैं। वहीं चुनाव खत्म होने के बाद ग्रामीणों और उनकी समस्याओं से किसी को कुछ लेना-देना नहीं है। पानी के लिए आज भी हमारे गांव के ग्रामीणों को सालों भर चुआ के भरोसे रहना पड़ता है। ये चुआ ही उनके लिए पेयजल का एकमात्र सहारा है। वहीं बरसात के समय में इस चुआ में जमा होने वाले बरसाती पानी को पीकर ग्रामीण बच्चे कई बार बीमार पड़ जाते हैं। लेकिन, बावजूद इसके गांव के ग्रामीणों की समस्याओं से किसी भी जनप्रतिनिधि या प्रशासन को कुछ भी लेना-देना नहीं है।
नक्सल प्रभावित इलाके में होने के कारण विगत वर्ष इस गांव में सुरक्षा बल का कैंप बनाया गया है। जिसके बाद गांव के पास से होकर गुजरने वाली मुख्य सड़क वर्तमान में बनाई जा रही है। जिसके चलते आवाजाही में गांव से बाहर निकलकर कुछ दूर बाद थोड़ी राहत मिली है।