दा फॉलाअप डेस्क
झारखंड राज्य की एक तस्वीर जहां बेटियों के साथ मारपीट बलात्कार, कत्ल, जुल्म, की घटनाएं सुनने ,देखने और पढ़ने को मिल रही हैं वहीं दूसरी तस्वीर बेटियों से जुड़ी सुखद समाचार भी है जो एक तरह से झारखंड राज्य के लिए गर्व की बात है।आपको मैं झारखंड राज्य के ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहा हूं जहां बेटियां उस गांव की पहचान हैं।
जी हां झारखंड में लौहनगरी जमशेदपुर से 27 किलोमीटर दूर तिरिंग गांव की पहचान और वहां की तस्वीर अचानक बदल गई है। ये एक आदिवासी बहुल गांव है जहां आदिवासीयों के करीब 90 घर हैं। इस आदिवासी गांव में जब आप किसी व्यक्ति का पता पूछते हैं तो लोग परिवार की बेटी का नाम बताते हुए घर दिखाते हैं।
तिरिंग गांव में 'मेरी बेटी, मेरी पहचान' अभियान चलाया जा रहा है
आदिवासी परंपरा के तहत अधिकतर घरों की दीवारें की पुताई विभिन्न रंगों से की गई हैं।वहां घरों में मिट्टी की दीवारों पर टंगे नेम प्लेट पर पूजा, चांदनी, सुजला, फूलमनी, पायल, टुसू के नाम देखकर चौंकने की ज़रूरत नहीं है। दरअसल, महिला सशक्तीकरण को लेकर देश के कई हिस्सों में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान चल रहा है, लेकिन तिरिंग गांव में 'मेरी बेटी, मेरी पहचान' अभियान चलाया जा रहा है। यही नहीं नेम प्लेट पर लड़कियों के नाम के साथ उनकी मां के नाम भी लिखे गए हैं। रंगों के चयन के पीछे ख्याल यह था कि पीला रंग प्रकाश, ऊर्जा और आशावाद का प्रतीक है, तो नीला रंग बेटियों को उड़ान भरने और आसमान छूने का हौसला देता है।
दूसरे गांवों के लोग भी तिरिंग को देखना चाहते हैं
आदिवासी समुदाय में महिलाएं खेती और घर का काम दोनों संभालती हैं, पर समाज पुरुष प्रधान होता है। गांव की आंगनवाड़ी सेविका बताती हैं कि अब आसपास के स्कूलों में लड़कियों के बीच चर्चा होने लगी है और दूसरे गांवों के लोग भी तिरिंग को एक बार देखना चाहते हैं। बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक तिरिंग गांव का शिशु लिंगानुपात एक हज़ार लड़कों पर 768 बच्चियां थी, और महिलाओं में साक्षरता दर महज़ पचास फ़ीसदी थी। पूरे जिले में महिलाओं की साक्षरता 67 फ़ीसदी तक थी।