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NTPC के कोल माइंस से खतरे में बिरहोर जनजाति का अस्तित्व, प्रशासन क्यों नहीं उठाता कदम?

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द फॉलोअप डेस्क

एक ऐसी आदिम जनजाति, बिरहोर, जो पहले से ही विलुप्त होने के कगार पर है। आज हजारीबाग में जानलेवा खतरे का सामना कर रही है। सरकार द्वारा संरक्षण की कई योजनाएं धरातल पर उतारी गई हैं, लेकिन हजारीबाग के केरेडारी प्रखंड के पगार में बिरहोर जनजाति के 32 से अधिक परिवार, एनटीपीसी के कोल माइंस के ठीक बगल में, मौत से रूबरू हो रहे हैं। मानवाधिकार आयोग के संज्ञान के बाद भी जिला प्रशासन की नींद नहीं खुली है।

हजारीबाग के केरेडारी प्रखंड के पगार में, जहां सरकार द्वारा बिरहोर जनजाति के लिए टोला बनाया गया है, वहीं से महज 50 मीटर की दूरी पर एनटीपीसी द्वारा कोयला उत्खनन का काम जोर-शोर से चल रहा है। इस उत्खनन के कारण होने वाले हर दिन के ब्लास्ट और प्रदूषण ने इन परिवारों का जीवन नरक बना दिया है।

गोदावरी सोनी, शिक्षिका कहती हैं, "दिन भर बड़ी-बड़ी कोयला लदी गाड़ियां गुजरती हैं, जिससे पूरे विद्यालय और बिरहोर के आवास में कोयले का डस्ट भर जाता है। बच्चों के कपड़े और शरीर भी कोयले के डस्ट से सने रहते हैं। जब ब्लास्ट होता है तो हमारे घर भी हिल जाते हैं। बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल में पढ़ाई करते हैं। सिर्फ स्कूल ही नहीं, बिरहोर के घर भी ब्लास्ट के झटकों से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।"

स्थानीय बिरहोर खुद अपनी आपबीती बताती हैं कि "जिस जगह पर हमारा टोला बनाया गया है, वहीं कोयला का माइंस है। दिन भर कोयला उत्खनन होता है, रात में भी काम जारी रहता है। विस्फोट और कोयला गर्दा के कारण जीना दुभर हो गया है। एनटीपीसी खाने के लिए भोजन तो उपलब्ध कराती है, लेकिन उसके बदले में हमें यह जानलेवा गर्दा मिलता है।"

इस गंभीर मुद्दे पर समाजसेवी और स्थानीय निरंजन कुमार भी अपनी चिंता व्यक्त कर कहते हैं कि "हमने इन समस्याओं को लेकर कई बार पत्राचार किया है, लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है। दिन भर में 10,000 से अधिक हाईवा गाड़ियां इनके टोले के सामने से गुजरती हैं, जिनका डस्ट इनके घर और स्कूल तक पहुंचता है। 32 बच्चे इस विद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन वे भी सुरक्षित नहीं हैं।"

यह क्षेत्र हजारीबाग सांसद मनीष जायसवाल के अंतर्गत आता है। हमने उनसे इस मामले पर बात की। मनीष जायसवाल, सांसद, हजारीबाग कहते हैं कि "बिरहोर एक ऐसी जनजाति है जिसे संरक्षित करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। आने वाले समय में पगार के बिरहोर को कैसे संरक्षित और सुरक्षित रखा जाए, इसे लेकर वार्ता भी किया जाएगा। मुझे द फॉलोअप से यह मुद्दा संज्ञान में आया है और बहुत जल्द समाधान भी होगा।"

हमने इस गंभीर मामले पर हजारीबाग के नवनियुक्त उपायुक्त शशि प्रकाश सिंह से भी बात की। शशि प्रकाश सिंह, उपायुक्त, हजारीबाग कहते हैं कि "नियम-कानून के अंतर्गत रहकर कदम उठाया जाएगा। इस संबंध में पहले भी बैठक की गई थी। यह बहुत ही गंभीर मामला है। जब तक कार्रवाई नहीं की जाएगी तब तक कानून के दायरे में रहकर कोल उत्खनन कंपनी को काम करने को कहा गया है।"

यह विडंबना ही है कि एनटीपीसी की चट्टी बरियातू कोल परियोजना के कारण बिरहोर जनजाति खतरे में रहकर जीवन यापन कर रही है। हमें याद रखना चाहिए कि हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड में एनटीपीसी चट्टी बरियातू कोल परियोजना में खनन के दुष्प्रभाव से आदिम जनजाति समुदाय के किरणी बिरहोर और बहादुर बिरहोर की मौत हो चुकी है, जिसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उपायुक्त हजारीबाग को सम्मन जारी किया था। जरूरत है जिला प्रशासन को ठोस कदम उठाने की और इन बिरहोर परिवारों को किसी सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने की, ताकि उन्हें संरक्षित और सुरक्षित रखा जा सके। द फॉलोअप इस मुद्दे पर अपनी नजर बनाए रखेगा।



 

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