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गोहाल में सोए, पानी पीकर गुजारा दिन; संघर्षों से भरी है नए CM चंपई सोरेन की कहानी

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द फॉलोअप डेस्कः 
विधायक दल के नये नेता चंपई सोरेन ने आज राज्य के 12वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भले ही विकट परिस्थिति में उन्हें आज शपथ लेना पड़ रहा है लेकिन उनके गांव में खुशी की लहर दौड़ गई है। लेकिन बता दें कि यहां तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री तक के सफर के बीच उनको कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। झारखंड मुक्ति मोर्चा के ये 67 वर्षीय नेता पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन सोरेन दोनों के विश्वसनीय रहे हैं। इसलिए झामुमो ने उनपर भरोसा जताया है। वह झारखंड अलग राज्य आंदोलन में उनकी भूमिका काफी अहम थी।  दिवंगत सांसद सुनील महतो एवं शहीद रतिलाल महतो के साथ आंदोलन को उग्र रूप देने में चंपई ने जमकर मेहनत की थी। 


सिर्फ पानी पीकर गुजारा करते थे 
आंदोलन के दौरान चंपई पुलिस के डर से घर के बजाय जंगल और पहाड़ों पर रहते थे। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक सिर्फ पानी से गुजारा कर लेते थे। वह खाने-पीने की परवाह किए बगैर गांवों में लोगों को अलग झारखंड राज्य के आंदोलन के लिए प्रेरित करते थे। उनके साथ झोला में एक पानी का बोतल होता था। पुलिस के डर से उनको गोहाल में भी सोना पड़ता था। ग्रामीणों का उन्हें काफी सहयोग मिला था। ग्रामीण उन्हें काफी सम्मान देते थे और हर बार पुलिस से उन्हें बचाकर अगले गांव की ओर रवाना कर देते थे।


किसानी करते थे सोरेन के पिता 
हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल में वे परिवहन और खाद्य व आपूर्ति विभाग का काम देख रहे थे। झारखंड राज्य गठन के आंदोलन में वे शिबू सोरेन के निकट सहयोगी रहे हैं। झारखंड विधानसभा में वे सरायकेला सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे इस सीट से सात बार विधायक रहे हैं। वे सरायकेला खरसांवा जिले के गम्हरिया प्रखंड के जिलिंगगोड़ा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता सेमल सोरेन किसान थे। साल 2020 में 101 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था। चंपई सोरेन उनकी अपने माता-पिता की छह संतानों में तीसरे नंबर पर हैं। उनकी मां माधो सोरेन गृहिणी थीं। चंपई सोरेन का विवाह काफी कम उम्र में मानको सोरेन से हुआ। इस दंपति की सात संताने हैं। 


2005 के बाद कभी नहीं हारे 
साल 1991 में सरायकेला सीट के लिए हुए उपचुनाव में उन्होंने पहली बार जीत हासिल की और तत्कालीन बिहार विधानसभा के सदस्य बने। तब वह उपचुनाव वहां के तत्कालीन विधायक कृष्णा मार्डी के इस्तीफ़े के कारण हुआ था। इसके बाद वे 1995 में फिर चुनाव जीते लेकिन साल 2000 का चुनाव हार गए। साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत हासिल की और उसके बाद कोई चुनाव नहीं हारे। वे छह बार इस सीट से विधायक रहे हैं। 11 नवंबर 1956 को जन्मे चंपई सोरेन ने दसवीं तक की ही पढ़ाई की है।