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अपनी सच्चाई छिपाने को मेरे पिता का नाम इस्तेमाल न करें, कल्पना के ट्वीट पर बोलीं सीता सोरेन की बेटी

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रांची 

जेएमएम नेता दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन के बीजेपी में जाने में जाने के बाद कल्पना मुर्मू सोरेन ने भावुक बयान दिया है। इसमें उन्होंने कहा है कि दुर्गा सोरेन और उनके पति हेमंत सोरेन के बीच कितने आत्मीय संबंध रहे। कल्पना ने कहा कि कई बार मैंने देखा था कि दुर्गा सोरेन जी हेमंत जी को छोटा भाई नहीं, बल्कि अपने बेटे जैसा स्नेह रखते थे। कल्पना के इस बयान का जवाब सीता सोरेन की बेटी विजयश्री सोरेन ने दिया है। विजयश्री ने कल्पना को दो टूक जवाब देते हुए कहा है कि अपनी सच्चाई छिपाने के लिए मेरे पिता के नाम का उपयोग न करें। बता दें कि कल्पना के बयान के बाद सीता सोरेन की दोनों बेटियों ने अपना पक्ष रखा है। 

जयश्री सोरेन ने क्या कहा 

वहीं, सोरेन की बेटी जयश्री सोरेन ने कहा है, पापा (दुर्गा सोरेन) ने हमें सिखाया है कि कभी भी अन्याय के सामने झुकना नहीं चाहिए। सदियों से महिलाएं अन्याय सहती आ रही हैं। लेकिन तमाम अन्याय के बावजूद और 14 साल की वफादारी का हमें ये सिला मिला। मेरी मां के लिए बीजेपी में जाने का यह फैसला आसान नहीं रहा होगा। मैं अपनी मां के फैसले का सम्मान करती हूं। विजयश्री ने कहा, आखिरकार मेरी मां के संघर्षों और चुनौतियों का अंत हो गया। अंतत: मां ने नहीं झुकने और बाधाओं का सामना किए बिना झारखंड और यहां के लोगों के कल्याण के लिए काम करने का निर्णय लिया। आखिर में कहना चाहूंगी कि मैं स्थिर होकर नहीं रहूंगी। उस रास्ते पर चलूंगी जो मेरे दिवंगत पिता दुर्गा सोरेन जी चाहते थे। वो रास्ता है अन्याय के खिलाफ हमेशा लड़ते रहने का। 

क्या कहा है कल्पना सोरेन ने 

कल्पना ने दिवंगत दुर्गा सोरेन और उनके बलिदानों को याद किया है। उन्होंने कहा कि हेमंत जी कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे लेकिन वह दुर्गा दादा ही थी जिनके संघर्षों को आगे बढ़ाते हुए हेमंत जी ने राजनीति में कदम रखा था। हेमन्त जी के लिए दुर्गा दा, सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता के समान थे। 2006 में मैं जब ब्याह के बाद इस बलिदानी परिवार का हिस्सा बनी तो मैंने हेमंत जी का अपने बड़े भाई के प्रति आदर और समर्पण देखा। मैंने दुर्गा दा का हेमंत जी के प्रति प्यार देखा। दुर्गा दादा की असामयिक मृत्यु और आदरणीय बाबा के स्वास्थ्य को देखते हुए हेमंत जी को राजनीति में आना पड़ा। हेमंत जी ने राजनीति को नहीं चुना था बल्कि राजनीति ने हेमंत जी को चुन लिया था। वह तो आर्किटेक्ट बनना चाहते थे लेकिन उनके ऊपर झामुमो, आदरणीय बाबा और स्व दुर्गा दा की विरासत और संघर्ष को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी थी।

 

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