द फॉलोअप डेस्कः
मुख्यमंत्री मेधा छात्रवृत्ति योजना में शिक्षा विभाग की बड़े पैमाने पर लापरवाही सामने आई है । लोहरदगा के 19 परीक्षा केंद्रों में रविवार को सरकारी स्कूलों के आठवीं पास विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति परीक्षा आयोजित की गई। इसमें विद्यार्थियों की उपस्थिति बहुत कम रही। कई परीक्षा केद्रों में तो परीक्षार्थियों से ज्यादा संख्या वीक्षकों की रही। प्लस टू चुन्नीलाल हाई स्कूल में 400 विद्यार्थियों को इस परीक्षा में शामिल होना था जबकि मात्र तीन परीक्षार्थी उपस्थित हुए। एम एल ए महिला कॉलेज लोहरदगा में 350 से अधिक परीक्षार्थियों की जगह केवल 17 परीक्षार्थियों ने परीक्षा लिखी।
उर्सुलाईन कॉन्वेंट में 400 में 181, लूथरन में 300 में 112 छात्र-छात्र परीक्षा देने पहुंचे। लाल बहादुर शास्त्री हाई स्कूल भंडरा में 567 में 188 और हाई स्कूल बिटपी में 300 में 116 बच्चे सीएम छात्रवृत्ति परीक्षा में उपस्थित हुए।
दरअसल परीक्षा के आयोजन की सूचना काफी देर से विभाग से विद्यालयों को प्राप्त हुई। मिडिल स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को निर्देश जारी किया गया कि उनके यहां से आठवीं पास विद्यार्थियों को परीक्षा में शामिल होने के लिए एडमिट कार्ड जारी करें। स्कूल से पास आउट हो चुके विद्यार्थियों से संपर्क करना मिडिल स्कूलों के लिए मुश्किल था और ज्यादातर स्कूलों में इसे लेकर लापरवाही बरती गई। नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को परीक्षा के बारे में पता ही नहीं चला या जिन्हें जानकारी हुई तो उनके पास एडमिट कार्ड उपलब्ध नहीं हो पाया।
मुख्यमंत्री मेधा छात्रवृत्ति योजना गरीब परिवारों के बच्चों के लिए पढ़ाई में आर्थिक मदद की एक महत्वपूर्ण योजना है। इसमें इस तरह से लापरवाही ने विभाग की कार्यशैली के साथ-साथ शिक्षकों की भूमिका पर भी पर सवाल खड़ा कर दिया है। जिला शिक्षा अधिकारी नीलम आईलीन टोप्पो ने इस मामले में कहा कि करीब सप्ताह पर पहले सूचना निकाली गई थी। तीन दिन पहले सारे ग्रुप में निर्देश डाला गया था।
बच्चों ने ऑनलाइन फॉर्म भरा था, उन्हें ऑनलाइन एडमिट कार्ड डाउनलोड करना था। यह सारी सूचना ऑफिस के माध्यम से और जैक ने भी जो निर्देश दिया था। सारा निर्देश दिया गया था इसके बावजूद भी हो सकता है कि शिक्षकों के द्वारा नहीं बताया गया होगा। कहीं न कहीं सूचना नहीं पहुंची होगी इसलिए बच्चों की उपस्थिति कम रही। इसके लिए जिम्मेदार शिक्षकों पर कार्रवाई करने की भी बात भी बात डीईओ ने कही। कहा कि कम से कम 80 प्रतिशत बच्चे भी परीक्षा में शामिल होते तो संतोषजनक कहा जा सकता था। छूटे हुए बच्चों की दोबारा परीक्षा लेने के संबंध में पूछे जाने पर कहा कि यह निर्णय तो जैक को लेना है।