द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड में नक्सल अभियान को सफल बनाने में मुखबिरों की अहम भूमिका होती है। लेकिन पिछले 11 माह से मुखबिरों को वेतन नहीं दिया गया है। ऐसे में वह आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। मुखबिरों को एसपीओ भी कहा जाता है। वेतन बंद होने की वजह से अब मुखबिरों ने शहर की ओर रूख कर लिया है। पैसे के अभाव में पुलिस के मुखबिर अब शहर में काम धंधा खोज रहे हैं। कुछ मुखबिरों ने एक मीडिया चैनल को बताया कि सिर्फ रांची ही नहीं बल्कि चाईबासा और खूंटी जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में भी वेतन बंद है। ऐसे में आर्थिक संकट से जूझते हुए मुखबिर बने रहने संभव नहीं है। कई एसपीओ तो शहर की तरफ आ गया है लेकिन अधिकांश अभी भी मुखबिरी ही कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें भरोसा है कि सरकार जल्द उनके बकाया वेतन दे देगी।
नक्सलियों को भी नहीं मिली रहा प्रोत्साहन राशि
मुखबिरों को सूचना एकत्र करने के लिए 6000 रुपये के मासिक वेतन दिया जाता है। नक्सल इलाकों में रहने वाले युवाओं को ही इसमें बहाल किया जाता है। गांव में रोजगार मिल जाने से मुखबिर बेहतरीन काम करते हैं। इनकी ही देन है कि नक्सल प्रभावित जिलों में पुलिस को बेहतरीन सफलता भी हाथ लगी है। कुछ मुखबिरों ने तो यह भी बताया कि नक्सल फंड की कमी की वजह से कई जिलों में तो वाहनों को डीजल पेट्रोल भी नहीं मिल रहे हैं। इसके साथ ही सरेंडर करने वाले बहुत सारे नक्सलियों के घरवालों को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि भी बंद कर दी गई है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने बताया कि 12 महीने से उन्हें मिलने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिली है। इस मामले पर एसएसपी चंदन सिन्हा ने बताया कि फंड की कमी की वजह से एसपीओ का वेतन रुका पड़ा है। जैसे ही फंड आएगा एसपीओ के वेतन का भुगतान होगा।
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