दयानंद रायः
10 अगस्त 1975 को जब पूरा देश आपातकाल के साये में सांस ले रहा था, रामगढ़ के नेमरा में दिशोम गुरू शिबू सोरेन और रूपी सोरेन के घर एक नन्ही किलकारी गूंजी। यह किलकारी हेमंत सोरेन की थी। उस हेमंत सोरेन की जिसे आगे चलकर झारखंड का मुख्यमंत्री बनना था और अपने पिता की खून पसीने से सींची गयी पार्टी का नेतृत्वकर्ता। हालांकि, उस रोज शायद ही किसी को अंदाजा हुआ होगा कि यही बालक आगे चलकर अपने पिता की बनायी गयी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए संभावनाओं का नायक बनेगा। पर जब 29 दिसंबर 2019 को भाजपा के हाथ से सत्ता छीनकर तथा बाद में जमीन घोटाले के आरोप में पांच महीने तक जेल में रहने के बाद हेमंत सोरेन तीसरी बार 4 जुलाई 2024 को झारखंड के मुख्यमंत्री बने तो यह साबित हो चुका था कि वे अपनी पार्टी के लिए संभावनाओं के नायक हैं।
हर बार साबित की काबिलियत
स्कूली शिक्षा के बाद बीआइटी मेसरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते समय जब हेमंत सोरेन ने छात्र राजनीति से राजनीति की रपटीली और दांव-पेंच से भरी गलियों में कदम रखा तो सबसे पहले अपनी पार्टी झामुमो में ही उन्होंने अपनी काबिलियत साबित की। जुलाई 2013 में जब उन्हें पहली बार झारखंड का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला तो महागठबंधन सरकार का मुखिया होने के बाद अपने लगभग चौदह महीने के कार्यकाल में जनता के जेहन में अपनी अमिट छाप छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपनी पार्टी को झारखंड की राजनीति में एक नयी ऊंचाई दी।
झारखंडी अस्मिता से कभी समझौता नहीं किया
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चाहे झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हों या फिर विपक्ष में रहे हों। उन्होंने झारखंडी अस्मिता से कभी समझौता नहीं किया। वर्ष 2019 में दूसरी दफा मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद उन्होंने जिस तरह मजदूरों को झारखंड वापस लाने के लिए फ्लाइट की व्यवस्था की वह हेमंत सोरेन के अलावा कोई दूसरा मुख्यमंत्री नहीं कर सकता था। उनपर अल्पसंख्यकों की राजनीति और तुष्टीकरण की राजनीति के आरोप लगे, लेकिन आरोप लगानेवाले यह भूल गये कि अल्पसंख्यक भी इस देश का हिस्सा हैं। और उनकी आवाज बुलंद करना एक तरह से देश की आवाज बुलंद करना ही है। हेमंत सोरेन के ट्वीटर हैंडल में साफ लिखा है कि वे भगवान बिरसा मुंडा के पद चिन्हों पर चलने वाले नेता हैं। बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी राज के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी शहादत दी। हेमंत सोरेन बिरसा मुंडा के पदचिन्हों पर चल रहे हैं। आदिवासियत और आदिवासियों के हितों की रखवाली करने में वे पूरी शिद्दत से लगे हुए हैं।
हक की आवाज उठाते रहे
यह सब जानते हैं कि झारखंड में देश का नंबर वन राज्य बनने की न सिर्फ क्षमता है बल्कि यह उच्च कोटि का मानव संसाधन भी उपलब्ध है। यहां एक्सएलआरआई, आइआइएम, निफ्ट और आइएसएम धनबाद जैसे कई संस्थान हैं जिनकी देश ही नहीं दुनिया में अलग पहचान है। पर झारखंड ने देश को जितना दिया उसकी तुलना में उतनी ही इसकी उपेक्षा हुई। झारखंड के हजारों करोड़ केंद्र और केंद्रीय प्रतिष्ठानों पर बाकी हैं। केंद्र यह राशि नहीं दे रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार केंद्र से यह राशि देने की मांग करते रहे हैं। ऐसा करते हुए वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि यह मांग करना उनके लिए जोखिम भरा हो सकता है लेकिन तब भी उन्होंने यह जोखिम लिया और पूरी ताकत से झारखंड की आवाज बुलंद की।
जनभावनाओं के अनुरुप काम कर रहे हैं
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पद संभालने के बाद से ही जनभावनाओं के अनुरूप काम कर रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ दिलाकर उन्होंने ऐतिहासिक काम किया। झारखंड विधानसभा के सत्रों में भी जिस बेबाकी से वे अपनी बात रखते रहे वह भी काबिले तारीफ है।
व्यवहार और विचार में साफगोई
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के व्यवहार और विचार में साफगोई है। वे जो कुछ कहते या करते हैं डंके की चोट पर करते हैं। एक दफा उन्होंने इडी को जिस प्रकार चुनौती दी, वह उनके इस अंदाज को ही दर्शाता है। उन्होंने सच कहा कि आदिवासी और दलित को सत्ता के शीर्ष पर बैठा देखना कुछ लोगों को सुहा नहीं रहा है। धुर्वा के प्रभात तारा मैदान में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में उनकी हूटिंग हुई तब भी उन्होंने बुलंदी से अपनी बात रखी।