सचिवालय अर्थात सचिवों का आलय। आलय मतलब घर। मंत्रालय मतलब मंत्रियों का घर। झारखंड सरकार का प्रोजेक्ट भवन, दोनों है। मंत्री और अधिकारी, दोनों का आलय। यहां दोनों बैठते हैं। बैठने के लिए अलग अलग आलीशान कार्यालय कक्ष बनाए गए हैं। उसमें सब तरह की सुख-सुविधा है। बैठ कर पूरे राज्य का कायाकल्प करने के लिए घंटों विचार-विमर्श करते हैं। माथापच्ची करते हैं। लेकिन यहां बैठनेवाले बड़े-बड़ों को दृष्टि दोष दिखता है। उसमें भी नजदीक की चीजें तो और नहीं दिखती है। प्रोजेक्ट भवन सचिवालय की चहारदीवारी के अंदर की चीजें तो बिल्कुल दिखायी नहीं पड़ती। जी हां, यह सच है। इसका प्रमाण है। प्रत्यक्ष प्रमाण है। जी हां, परिसर के अंदर सड़ रही करोड़ों की गाड़ियां इसका तथ्यात्मक प्रमाण है। पड़े-पड़े पहले वाहनों के चक्के सड़ जाते हैं, फिर उसकी बॉडी भी नाकाम हो जाती है। हो रही है। लेकिन प्रोजेक्ट भवन में बैठनेवाले साहबों, माननीयों को यह बिल्कुल नहीं दिख रहा। वाहनों का समय पर ऑक्शन हो जाए, सरकार के खाते में माल आ जाए। किसी को चिंता नहीं। क्योंकि सड़ रही गाड़ियां दिख ही नहीं रही। जबकि इतना भर करना है। 10 साल या दो लाख किलोमीटर से अधिक चले वाहनों का ऑक्शन करा देना है। इसके लिए भी नियम बने हुए हैं। एमवीआई से रिपोर्ट लेकर ऑक्शन कराने की जिम्मेदारी भवन निर्माण विभाग को सौंप देनी है। भवन निर्माण विभाग को परिवहन विभाग के सहयोग से ऑक्शन को अंजाम तक पहुंचा देना है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। क्यों, क्योंकि इसमें कोई लाभ नहीं है। जबकि परिसर में कवाड़ा गाड़ियों के खड़े रहने के कारण रोजमर्रे की गाड़ियों को खड़े करने की जगह संकुचित हो चुकी है। लेकिन बड़े लोगों को न तो अपनी गाड़ी पार्क करनी पड़ती है और न उनकी गाड़ी को खड़ी करने में कोई परेशानी ही खड़ी होती है।
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