द फॉलोअप डेस्क
संसद के मॉनसून सत्र में डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल 2023 पारित किया गया है. इस दौरान न विपक्षी सांसदों की बात सुनी गई और ना दूसरे लोगों की। इस बिल का ड्राफ्ट शुरुआत में भी स्टैंडिंग कमिटी को दिखाया गया। सिर्फ स्टैंडिंग कमिटी के भाजपा के मंत्री ने इस बिल पर साइन किया और आखिर में संसद में बिना चर्चा के कुछ मिनटों में यह बिल पारित हो गया। इस कानून से हमारे जन अधिकारों व लोकतांत्रिक अधिकारों पर दीर्घ कालीन प्रभाव पड़ने वाला है। इस कानून की मदद से सरकार ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा आठ को संशोधित कर दिया है। इसका मतलब है अब सरकारी जवाबदेही संबंधित अनेक जानकारी सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर हो जायेगी। यह बातें अंजली भारद्वाज ने झारखंड जनाधिकार महासभा के द्वारा डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन कानून 2023 और इसका जन अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों पर दुष्प्रभाव को लेकर हुई जन चर्चा के दौरान कही।
सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की हो रही साजिश
आगे कहा कि केंद्र सरकार देश के लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं जैसे चुनाव आयोग, जांच एजेंसी आदि को लगातार कमजोर करने पर तुली है। भाजपा के रंग में इनको ढाला जा रहा है और मोदी सरकार का एजेंट बनाया जा रहा है। इसका विरोध होना चाहिये। मोदी सरकार हर तरह से ऐसी ही नीति और कानून ला रही है जो लोगों के सवाल करने के अधिकार को खत्म कर देगा। लोगों तक जमीनी सच्चाई न पहुंचे, इसकी हर कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि डाटा प्रोटेक्शन कानून 2023 अंतर्गत अब किसी भी व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह व संगठन, जो फैक्ट तथ्य लाते हैं, जनता की समस्या को समझने के लिए सर्वेक्षण करते हैं पीड़ितों की सूची बनाते हैं, ये सभी प्रभावित होंगे।
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