द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड हाई कोर्ट ने एक युवक को थाने में दो दिन तक दी गई यातना मामले में पीड़ीत को पांच लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को दिए आदेश में कहा है कि पीड़ित युवक को दी जाने वाली यह राशि दोषी पुलिस अफसर से वसूली जाए। दरअसल झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने लातेहार के गारू थाना में ग्रामीण अनिल कुमार सिंह को यातना देने के मामले की सीआइडी जांच को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की। यह राशि भुगतान की तिथि से दो महीने के भीतर वसूल की जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारियों ने मनमाने तरीके से कानून को अपने हाथ में लिया और इस एक गरीब नागरिक को प्रताड़ित किया, जबकि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था। अदालत ने आदेश की एक प्रति महालेखाकार झारखंड के कार्यालय के साथ-साथ राज्य के डीजीपी को आवश्यक कार्यवाही करने के लिए भेजने का भी निर्देश दिया। इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शैलेश पोद्दार व अधिवक्ता ट्विंकल रानी ने पैरवी की।
क्या है मामला
हाईकोर्ट ने अनिल कुमार सिंह की ओर से दायर क्रिमिनल रिट याचिका पर सुनवाई के बाद मंगलवार (25 जून) को फैसला सुनाया। याचिका के अनुसार 22 फरवरी 2022 को गारू थाना पुलिस ने नक्सली होने के संदेह में युवक को उसके घर से उठाया था। लातेहार जिले के गारू थाना प्रभारी रंजीत कुमार यादव ने अनिल कुमार सिंह को दो दिनों तक थाने में रखा और उसे अमानवीय यातनाएं दी। अदालत में सुनवाई के दौरान उसके अधिवक्ता ने कहा कि अनिल कुमार सिंह को बुरी तरह पीटा गया और उसके प्राइवेट पार्ट में पेट्रोल डाल दिया गया। बाद में पुलिस ने माना था कि उससे गलती हुई है। लोकल थाना पुलिस किसी और को गिरफ्तार करने गई थी, लेकिन पहचानने में भूल की वजह से अनिल कुमार सिंह को गिरफ्तार कर थाने ले आई। अनिल कुमार के अनुसार उसने अमानवीय टॉर्चर की घटना पर थाना प्रभारी के खिलाफ एफआईआर के लिए थाने में आवेदन दिया, लेकिन इस पर महीनों तक कार्रवाई नहीं हुई।
सीएम हेमंत सोरेन ने लिया था संज्ञान
बता दें कि इस मामले में तत्कालीन सीएम हेमंत सोरेन ने इस घटना पर संज्ञान लिया था और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। इस पर भी कुछ नहीं हुआ। पीड़ित ने हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि चूंकि उसकी शिकायत पर जिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई है, आरोपी अफसर रंजीत कुमार यादव उसी थाने के इंचार्ज हैं, ऐसे में निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। उसने कोर्ट से इसकी जांच सीआईडी या किसी स्वतंत्र एजेंसी को देने की गुहार लगाई थी।