logo

भोजपुर के अजय सिंह का अगला लक्ष्य 1000 करोड़ टर्नओवर, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में भी सफलता का परचम लहराया

AJAY4.jpg

डेस्कः
बिहार के भोजपुर जिले के सफल उद्यमी अजय सिंह ने अपनी मेहनत और दूरदृष्टि से बिजनेस की दुनिया में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वित्त वर्ष 2024-25 में 544 करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल करने के बाद अब उनका लक्ष्य वित्त वर्ष 2025-26 में 1000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर हासिल करने का है। अजय सिंह सिर्फ इंडस्ट्री और व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने एंटरटेनमेंट की दुनिया में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उनकी एंटरटेनमेंट कंपनी लवली वर्ल्ड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने इस साल दो फिल्में रिलीज कर अपनी सफलता का नया अध्याय लिखा है। उनकी इस उपलब्धि से भोजपुर और बिहार के युवाओं को प्रेरणा मिल रही है। बिजनेस और मनोरंजन दोनों क्षेत्रों में उनकी बढ़ती सफलता से यह साफ है कि आने वाले समय में वे और ऊंचाइयों को छूने वाले हैं।


अजय कुमार सिंह की कहानी संघर्ष, मेहनत और हिम्मत की मिसाल है। गरीबी और चुनौतियों से घिरी उनकी जिंदगी किसी प्रेरणादायक फिल्म की तरह है। एक समय था जब अजय पुलिस बैरकों में जमीन पर सोते थे, फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मजदूरी से लेकर बिना वेतन की नौकरी तक, उन्होंने जीवन की कठिन राहों पर कई ठोकरें खाईं, लेकिन उनका हौसला कभी कम नहीं हुआ। सिर्फ 1,000 रुपए से शुरुआत करके उन्होंने अपना व्यवसाय स्थापित किया, और आज उनका कारोबार 800-900 करोड़ रुपए के टर्नओवर तक पहुंच चुका है। बिहार में उद्योग लगाने के उनके सपनों ने न सिर्फ उन्हें सफलता दिलाई, बल्कि हजारों लोगों को रोजगार भी प्रदान किया। अजय कुमार सिंह ने साबित कर दिया कि जब इरादा मजबूत हो, मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी रुकावट सफलता के रास्ते में नहीं आ सकती। अजय का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, जहां आर्थिक तंगी हमेशा एक चुनौती बनी रहती थी। उनका घर एक छोटे से खपड़े का था, लेकिन उनके आत्मविश्वास और मेहनत की कोई सीमा नहीं थी।


अजय कुमार सिंह की जिंदगी की शुरुआती चुनौतियाँ भी बेहद कठिन थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि 1992 में मजबूरीवश उनकी मां ने उन्हें दरभंगा, उनके पिता के पास भेज दिया। उनके पिता पुलिस में कांस्टेबल थे और पुलिस लाइन के बैरकों में रहते थे। अजय को भी वहीं रहना पड़ा, जहां रातें जमीन पर बिछे बिस्तर पर ही गुज़रती थीं। इस दौरान उन्होंने गरीबी और संघर्ष का अहसास और गहराई से किया। 1995 में जब उनके पिता का तबादला रांची हुआ, तो अजय भी उनके साथ वहां चले गए। लेकिन हालात फिर भी नहीं बदले। अब भी वे पुलिस बैरक में ही रहते थे और हर दिन पिता की डांट-फटकार सुनते थे। बाबूजी अक्सर कहते, "कुछ काम क्यों नहीं करते?" लेकिन यह सवाल अजय के लिए इतना सरल नहीं था। अजय ने तो ग्रेजुएशन की थी, लेकिन नौकरी कहीं नहीं मिल रही थी। घरवालों के दबाव के चलते उन्होंने आखिरकार मजदूरी करने का निर्णय लिया। हर दिन उन्हें 40 रुपए मिलते थे, लेकिन यह काम वह ज्यादा समय तक नहीं कर पाए। तीन महीने के बाद उन्होंने मजदूरी छोड़ दी, क्योंकि बाबूजी के ताने लगातार बढ़ते जा रहे थे। "बगल के ठाकुर जी का लड़का 50 रुपए रोज कमाता है, तुम भी कुछ करो," यह बातें अजय को और भी हतोत्साहित करती थीं।


मजदूरी के अनुभव ने अजय को सिखा दिया कि मेहनत से कमाये गए पैसे का कितना महत्व है। इसके बाद उन्होंने खुद कुछ करने की ठानी। उन्होंने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ियों की हेडलाइट के ऊपरी हिस्से को काला करने का काम शुरू किया। यह काम एसपी की अनुमति से होता था और हर गाड़ी से उन्हें 10 रुपए मिलते थे। धीरे-धीरे यह काम बढ़ता गया और अजय को इसमें सफलता मिलने लगी। हालांकि, यह काम ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया।
इसके बाद उन्होंने रांची में रहकर पत्रकारिता (जर्नलिज्म) में दाखिला लिया और एक साल तक मुफ्त में पढ़ाई की। इसी दौरान उन्होंने पॉलिटेक्निक रांची में शॉर्टहैंड और टाइपराइटिंग भी सीखी, ताकि किसी सरकारी दफ्तर में स्टेनोग्राफर की नौकरी मिल सके। लेकिन किस्मत अभी भी उनकी परीक्षा ले रही थी—उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली। इसके बाद छह महीने तक अजय ने फ्री में अखबार में नौकरी की।


साल 2001 में अजय ने महज 1,000 रुपए की पूंजी से अपना खुद का बिजनेस शुरू किया। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा फैसला था। संयोग से उसी साल उनकी जान-पहचान के एक BSNL अधिकारी एसडीई एमके सिन्हा ने उन्हें 20,000 रुपए का ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का ठेका दिया। हालांकि, इस ठेके को पूरा करने के लिए भी उनके पास 1,000 रुपए की जरूरत थी, जो उनके पास नहीं थे। तब मां ने एक पुलिसकर्मी राम अयोध्या शुक्ला की पत्नी (भाभी) से पैसा उधार लिया। अजय ने इस पैसे से काम शुरू किया और जैसे ही उन्हें इस काम की पेमेंट मिली, उन्होंने सबसे पहले भाभी का उधार चुकाया। पहले ठेके से मिले अनुभव ने अजय को आगे बढ़ने का हौसला दिया। उन्होंने अपने नाम से टेंडर भरना शुरू किया और छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स लेते रहे। धीरे-धीरे उनका काम बढ़ता गया और उन्होंने टेलीकॉम सेक्टर में अपनी पहचान बना ली। 2012 में उन्होंने अपनी खुद की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी सिंह इंफ्राटेल प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की।


अजय बताते हैं, 2017 में मेरी मुलाकात बॉलीवुड एक्ट्रेस अमीषा पटेल से एक कार्यक्रम के दौरान हुई थी। अजय बताते हैं, ‘अमिषा से फिल्म बनाने को लेकर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि हम एक देसी मैजिक करके फिल्म बना रहे हैं। फिल्म प्रोडक्शन के लिए 2 करोड़ रुपए लगेंगे। अगर कोई हमें एक करोड़ रुपए दे दे तो हम प्रोडक्शन में उनका नाम भी दे देंगे।' साथ ही तीन परसेंट प्रति महीने ब्याज भी देंगे। उस पर मैंने एक करोड़ रुपए उन्हें दे दी। जैसे ही मैंने उनको पैसे दिए कुछ दिन के बाद उन्होंने 3,00,000 रुपए मेरे अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया। उन्होंने यह बताया कि मैंने आपको इंटरेस्ट दिया। फिर आगे चलकर उन्होंने कुछ और पैसे मांगे, फिर हमने उनकी मदद कर दी। मुंबई में कुछ और लोगों ने कहा कि फिल्म बनाओ, काफी अच्छी कमाई है। यह बात मैंने अमीषा पटेल से डिस्कस की तो उन्होंने कहा कि हम लोग साथ मिलकर एक प्रोडक्शन कंपनी लॉन्च करते हैं। इसके लिए आप 50 लाख रुपए हमारे अमीषा प्रोडक्शन में जमा करवा दीजिए।’


मुझे यह बात ठीक नहीं लगी। मैंने कहा कि जो भी खर्च होगा वह मैं खुद करूंगा। जिस पर अमीषा ने कहा कि आपको कोई यहां नहीं जानता है, आप काम नहीं कर पाएंगे। आपके साथ बॉलीवुड में कोई काम नहीं करेगा। उनकी इस बात से मेरा इगो हर्ट हो गया। इसके बाद हमने उधार दिए गए अपने ढाई करोड़ रुपए अमीषा पटेल से मांगे। उन्होंने चेक दिया, लेकिन वो बाउंस कर गया। काफी मशक्कत और कोर्ट जाने के बाद मुझे मेरा पैसा मिला।’ अमीषा पटेल के ईगो हर्ट करने के कारण मैंने अपनी लवली वर्ल्ड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड के नाम से फिल्म कंपनी बनाई। इससे अब तक तीन फिल्म फैमिली ऑफ ठाकुरगंज, अदृश्य, चलती रहे जिन्दगी बनाई गई है। अजय ने बताया, ‘अभी हमारे नाम से 4 रजिस्टर्ड कंपनी लवली वर्ल्ड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, सिंह इंफ्राटेल, भारत प्लस एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड और भारत प्लस इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड है। सभी कंपनियों का मिलाकर अभी हमारा सालाना टर्नओवर 800 से लेकर 900 करोड़ रुपए के बीच है। इन सभी कंपनियों में करीब 4 हजार लोग काम कर रहे हैं। जिसमें 95 प्रतिशत लोग बिहार से हैं।’