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कला के क्षेत्र में AI की सेंधमारी : गिबली का ट्रेंड और कलाकारों की चिंता 

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सत्य कुमार
15 अप्रैल को विश्व कला दिवस के रूप में मनाया जाता है, यह दिन महान रेनासां कलाकार लियोनार्डो दा विंची के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य कला की विविधता, मौलिकता और समाज में उसके योगदान को सम्मान देना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि कला केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि सोच, संवेदना और सृजनशीलता की जीवंत अभिव्यक्ति है। लेकिन आज, जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस) रचनात्मकता के क्षेत्र में तेजी से प्रवेश कर रही है, यह मूल भावना खतरे में पड़ती नजर आ रही है। 
गिबली की शैली, और मशीन का अनुकरण 
जापान का स्टूडियो गिबली दुनिया भर में अपनी विशिष्ट एनिमेशन कला शैली के लिए जाना जाता है। हाल ही में इंटरनेट पर बड़ी मात्रा में ऐसे चित्र सामने आए हैं जो ए.आई. द्वारा गिबली की शैली में बनाए गए हैं, इतने परिष्कृत कि एक आम दर्शक को असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाए। यह महज़ नकल नहीं, बल्कि ब्रांड और उसके पहचान पर हमला है, जो दशकों की मौलिक मेहनत और कलात्मक दृष्टि से विकसित हुई थी।
कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और पेटेंट की दीवारें कमजोर 
कला की दुनिया में बौद्धिक संपदा अधिकार (आई.पी.आर.) जैसे कॉपीराइट, ट्रेडमार्क और पेटेंट कलाकारों को उनके रचनात्मक कार्यों पर नियंत्रण और सम्मान देने के लिए बनाए गए थे। परंतु ए.आई. इन व्यवस्थाओं को धता बताकर, बिना अनुमति के सैकड़ों कलाकारों के काम से 'सीख' रहा है और उन्हीं शैलियों में नई कृतियाँ बना रहा है। यह सिर्फ कॉपीराइट उल्लंघन नहीं है, यह सांस्कृतिक चोरी है। 


लोक कला का संरक्षणः पहचान और अस्मिता की रक्षा 
विशेष चिंता का विषय यह है कि भारत जैसे देश की लोक कलाएं जैसे मधुबनी, वारली, पत्ताचित्र, गोंड, फड़ आदि अब ए.आई. मॉडल के लिए नया लक्ष्य बन रही हैं। इन शैलियों की विशिष्टता, जो केवल कला नहीं बल्कि किसी समुदाय की पहचान और राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक हैं, ए.आई. द्वारा कॉपी की जा रही हैं। यदि इन लोककलाओं का संरक्षण और प्रमाणीकरण नहीं किया गया, तो न केवल कलाकारों की मेहनत मिटेगी, बल्कि उनकी पहचान भी वैश्विक कोडिंग के समुंदर में विलीन हो जाएगी। 
राज्य सरकारें क्या कर सकती हैं? 
GI टैग और डिजिटल रजिस्ट्रेशन- हर प्रमुख लोक कला को भौगोलिक संकेतक (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) के तहत पंजीकृत कराना चाहिए ताकि उसकी कॉपी रोकना कानूनी रूप से संभव हो
डिजिटल आर्काइव और डेटाबेस निर्माण- राज्य स्तर पर लोक कलाकारों और उनकी कृतियों 
का डिजिटल आर्काइव तैयार किया जाए जो न केवल संदर्भ के लिए उपयोगी हो बल्कि यह सिद्ध भी करे कि मौलिक रचना किसकी है। 
AI निगरानी तंत्र- ऐसी एजेंसियों का गठन किया जाए जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ए.आई. से जनरेटेड लोक कला की निगरानी करें और ज़रूरत पड़ने पर कानूनी कार्रवाई करें। 
कलाकारों को प्रशिक्षण और सहायता- पारंपरिक कलाकारों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने, 
उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और डिजिटल हस्ताक्षर जैसी तकनीकों से लैस करने की आवश्यकता है। 
सांस्कृतिक नीति में संशोधन- राज्य में सांस्कृतिक नीति का निर्माण हो, और जिस राज्य में है वहां राज्य की सांस्कृतिक नीति में ए.आई. द्वारा लोककला की नकल को एक गंभीर अपराध के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। 
साइबर लॉ और नैतिक चुनौती 
भारत सहित अधिकांश देशों का साइबर कानून अब तक डेटा, गोपनीयता और साइबर अपराधों तक सीमित रहा है। लेकिन अब ए.आई. द्वारा उत्पन्न कला ने साइबर लॉ को एक नई दिशा में सोचने के लिए मजबूर किया है, क्या एक एल्गोरिद्म को रचनाकार माना जाए? क्या उसके द्वारा बनाई गई रचना पर उसका अधिकार हो या उस कलाकार का जिसकी कला से वह प्रशिक्षित हुआ?
कलाकार बनाम एल्गोरिद्म 
यह बहस अब केवल तकनीकी नहीं, बल्कि नैतिक भी है। ए.आई. द्वारा बनाई गई कला तेजी से सोशल मीडिया, एन.एफ.टी मार्केट्स और डिज़ाइन प्लेटफॉर्म्स पर बिक रही है, जिससे वास्तविक कलाकारों का न केवल आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि उनकी रचनात्मक पहचान भी खतरे में है। जब कला की आत्मा को एल्गोरिद्म छीनने लगे, तो हम सभी को यह पूछना चाहिए "क्या यह सृजन है, या केवल यांत्रिक नकल?" 
अब समय है संतुलन का 
तकनीक का विकास रोका नहीं जा सकता, लेकिन उसे मानवीय मूल्यों के साथ संतुलित करना ज़रूरी है। ए.आई. को एक सहायक के रूप में देखना चाहिए, प्रतिस्पर्धी के रूप में नहीं। इसके लिए कानूनी सुधारों, पारदर्शी ए.आई. प्रशिक्षण नीतियों, और कलाकारों के लिए न्यायसंगत रॉयल्टी व्यवस्था की आवश्यकता है। 
इस विश्व कला दिवस पर हमें यह निश्चय करना चाहिए कि हम केवल कला की सराहना नहीं करेंगे, बल्कि कलाकारों, उनकी परंपराओं और हमारे सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए ठोस प्रयास भी करेंगे, ताकि भविष्य में भी रचनात्मकता इंसानी दिल और दिमाग से निकलती रहे, न कि केवल डेटा-सर्वर से।