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RSS के 100 साल : क्या कोई दलित कभी बन सकता है संघ प्रमुख?

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दिग्गज नेता शिवानंद तिवारी कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठा रहे हैं

 

(शिवानंद तिवारी का ये आलेख उनके सोशल मीडिया पोस्ट से लिया गया है)


अगर संघ सचमुच देश में जाति विहीन समाज बनाना चाहता है तो उसे पिछड़े या दलित समाज के अपने स्वयं सेवक को संघ का प्रमुख बना देना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीमान मोहन भागवत जी ने नागपुर में कल यानी विजया दशमी के दिन परंपरा के अनुसार स्वयंसेवकों को और आगत अतिथियों को संबोधित किया। अगले वर्ष राष्ट्रीय सेवक संघ का शताब्दी वर्ष मनाया जाएगा। 1925 के विजया दशमी के दिन ही नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी। उस दिन से आज तक संघ प्रमुख विजया दशमी के दिन नागपुर में अपने स्वयंसेवकों और आगत अतिथियों को संबोधित करते हैं। इस संबोधन पर देश भर का ध्यान रहता है। यह इसलिए भी महत्त्व पूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले दस वर्षों में देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की ही सरकार चल रही है। एक तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का वैचारिक पालन पोषण संघ में ही हुआ है। लंबे समय तक वे न सिर्फ़ संघ के स्वयंसेवक रहे हैं बल्कि इसके निष्ठावान प्रचारक भी रहे हैं। इसलिए स्वाभाविक है सबका ध्यान संघ प्रमुख के संबोधन पर रहता है। 


भागवत जी ने देश में सामाजिक एकता पर बल दिया। देश की मज़बूती पर उन्होंने बहुत बल दिया। सामाजिक एकता के लिए पिछड़े और दलित समाज के नायकों के उत्सवों में सबको शामिल होने की सलाह दी। देश के अंदर की विविधता को क़ुबूल किया। भारत जैसे विशाल देश के लिए इसे स्वभाविक बताया। लेकिन मणिपुर और लदाख की उन्होंने बहुत चलताऊ ढंग से चरचा की। 
मणिपुर में पिछले साल मई महीने से आग लगी हुई है, और न जाने अब तक कितने लोग मारे जा चुके हैं। दो क़ौम के लोग एक दूसरे पर राकेट दाग रहे हैं। लेकिन इसके लिए उन्होंने मोदी सरकार की निंदा तो दूर की बात है, सरकार की इस घोर असफलता पर उन्होंने गंभीर चिंता का भी इज़हार नहीं किया। 
लद्दाख से पैदल चल कर वहाँ के नागरिकों का एक जत्था अपनी पीड़ा और परेशानी की जानकारी देने के लिए दिल्ली आया है। दिल्ली में प्रवेश करते ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। लेह, लदाख और कारगील चीन से लगा हुआ है। कारगील युद्ध को स्मरण कीजिए। वहाँ पहाड़ की चोटी पर पाकिस्तान भारी भारी हथियारों के साथ जम गया है। यह जानकारी दिल्ली को सरकारी सूचना तंत्र से नहीं बल्कि वहाँ के चरवाहों ने दी। आज वही चरवाहे बता रहे हैं कि चीन ने हमारे बड़े इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया है। स्थाई निर्माण कर लिया। उसी इलाक़े से अपना दुखड़ा सुनाने ये लोग दिल्ली आये हैं। सरकार के किसी ज़िम्मेवार व्यक्ति का उनसे मिलना तो दूर उनके साथ वह उपद्रवियों जैसा व्यवहार कर रही है। कोई भी लायक सरकार अपने देश की सीमा पर के नागरिकों के असंतोष को तत्काल शांत करती है। सीमा की पहली सुरक्षा तो उन्हीं लोगों के ज़रिए होती है। लेकिन मोहन भागवत जी ने बहुत चलताऊ ढंग से इनकी चर्चा की।
महाराष्ट्र के भिवंडी इलाक़े में गणेश जी की मूर्ति पर ढेला पत्थर फेंकने वाली घटना को उन्होंने बहुत तूल दिया। संपूर्ण देश में संभवतः ऐसी घटना सिर्फ़ भिवंडी में ही हुई। 


लेकिन उत्तराखंड में एक तथाकथित साधू ने मुसलमानों के सबसे आदरणीय पैगंबर साहब के विरूद्ध अपमानजनक टिप्पणी की। देश भर के मुसलमानों में इस पर भारी रोष है। यह व्यक्ति आदतन ऐसा बोलता है। और तो और भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने भी यही किया। देश की बीस करोड़ की आबादी की धार्मिक भावनाओं को आहत करके, उनके पैगंबर को अपमानित कर देश को मज़बूत किया जा रहा है या कमजोर! भागवत जी के संबोधन में इसका ज़िक्र तक नहीं हुआ। 
कोलकाता के अस्पताल में शर्मनाक घटना की उन्होंने कठोर शब्दों में निंदा की। इसे सांस्कृतिक पतन बताया। लेकिन महाकालेश्वर के शहर उज्जैन में अभी दिन दहाड़े व्यस्त सड़क पर बलात्कार की घटना हुई। लोगों की भीड़ न सिर्फ़ देखती रही बल्कि उसका वीडियो बनाती रही। हमारे समाज में व्याप्त ऐसी कायरता का ज़िक्र अपने भाषण में नहीं किया। ऐसी घटनाएँ देश भर में हो रही हैं। गुण्डे सरेआम लड़कियों को अपमानित करते हैं। उसके परिवार के लोग अगर कहीं विरोध करते हैं तो उन पर भी हमला करते हैं।


हमारे समाज में भयानक रूप से कायरता  व्याप्त है। सदियों से हमारा यही हाल है। इस पर मोहन भागवत जी ने चिंता नहीं ज़ाहिर किया। 
हिंदू समाज में जातीय अलगाव दूर कर मिल्लत की बात भागवत जी बराबर करते हैं। लेकिन संघ के अंदर यह झलकता नहीं है। एक ही जाति के पाँच लोगों ने संघ को स्थापित किया। स्थापना का सौ वर्ष होने जा रहा है। लेकिन आज तक कोई पिछड़ा या दलित संघ प्रमुख क्यों नहीं बन पाया। इसलिए संघ के लोग जब हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं तो उसका मक़सद भारतीय संविधान ने सबको बराबरी का जो अधिकार दिया है उसको समाप्त कर पुनः पुरानी सामाजिक व्यवस्था लागू करना ही दिखाई देता है। अगर सचमुच संघ देश में जाति विहीन समाज बनाना चाहता तो उसे पिछड़े या दलित समाज के अपने स्वयं सेवक को संगठन का प्रमुख बना देना चाहिए। तब संघ समाज में जिस एकता की बात करता है उस पर लोगों का भरोसा होगा। 

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