डेस्क:
आज आम बजट की चर्चा हो रही है...कभी ऐसे ही रेल बजट की चर्चा होती थी। रेल मंत्रालय अलग से बजट पेश करता था। घर में, ऑफिस में और यहां तक कि चाय की टपरी पर भी लोग चर्चा करते कि कौन सी नई ट्रेन चलने वाली है। कई राज्य नए दामाद की तरह खुश हो जाते क्योंकि उनको नई ट्रेनें मिलतीं तो कई राज्य फूफा की तरह रूठ जाते कि हमें अनदेखा कर दिया।
गठबंधन की सरकारों में होती थी खास चर्चा
गठबंधन की सरकारों में तो रेल बजट ज्यादा चर्चा में रहता था। बतौर रेल मंत्री लालू यादव जिस अंदाज में बजट भाषण पढ़ते। चुटीले अंदाज में जब वो रेलवे में नई सुविधाओं की घोषणा करते तो वो मीडिया की सुर्खियां बन जाती थीं। लेकिन बीते 5 साल से ऐसा नहीं हो रहा है। अब अलग से रेल बजट पेश नहीं होता। चर्चा भी नहीं होती। आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हुआ। कब से रेल बजट को आम बजट में ही मिला दिया। चलिए....यहां इसी बारे में बात करते हैं......
सितंबर 2016 में मोदी कैबिनेट ने दी मंजूरी
सितंबर 2016। यही वो तारीख थी जब तात्कालीन मोदी कैबिनेट ने फैसला किया था कि अब रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जायेगा। दरअसल, 2015 में नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकार को सलाह दी थी कि रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा खत्म कर जाये। सरकार ने लंबा विचार-विमर्श किया। कई मीटिंग्स हुई। आखिरकार 21 सितंबर 2016 को सरकार ने इसे मान लिया। लगभग 92 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई। यहां आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पहली बार साल 1924 में अलग से रेल बजट पेश किया गया था।
आखिर क्यों रेल बजट को लेकर हुआ बदलाव
अब यहां 2 सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल कि 1924 में क्यों अलग से रेल बजट पेश करने की शुरुआत हुई। दूसरा सवाल कि आखिर क्यों 2016 में इसे आम बजट के साथ मर्ज कर दिया गया। चलिए इसे समझते हैं। 2016 में, यानी जब ये फैसला किया गया। तब छपी कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, औपनिवेशक काल में यानी जब भारत में ब्रिटेन का शासन था, सरकार को मिलने वाले राजस्व और जीडीपी में रेलवे की हिस्सेदारी अनुपातिक रूप से ज्यादा थी। तकरीबन 80 फीसदी। ऐसे में तब सरकार को रेल बजट अलग से पेश करने की जरूरत महसूस हुई।
1924 में पहली बार अलग से पेश हुआ रेल बजट
1924 के बाद हर साल रेल बजट अलग से पेश किया जाता रहा। 1947 में भारत को आजादी मिल गई, लेकिन परंपरागत रूप से रेल बजट को अलग से पेश करने का चलन जारी रहा। 2014 में देश में बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार सत्ता में आई। योजना आयोग अब बन गया नीति आयोग। नीति आयोग को बजट व्यवस्था में सुधार के लिए सुझाव देने का जिम्मा सौंपा गया। 2015 में नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय की अगुवाई में एक समिति का गठन किया गया। समिति ने सलाह दी कि रेल बजट को आम बजट के साथ ही मर्ज कर दिया जाये। तब की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नीति आयोग ने सरकार को कहा कि अब भारत की जीडीपी में रेलवे का हिस्सेदारी कम हो गई है। सरकार को मिलने वाले राजस्व में भी रेलवे का हिस्सा कम है। ऐसे में केवल परंपरा के लिए रेल बजट को अलग से पेश करने का कोई मतलब नहीं है। काफी सोच-विचार के बाद सरकार ने इसे मान लिया।
तात्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने क्या कहा
सितंबर 2016 में मोदी सरकार ने तय किया कि अब से रेल बजट अलग से पेश नहीं होगा। 2017 में रेल बजट को आम बजट के साथ ही मिला दिया गया। 1 फरवरी 2017 को तात्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 92 साल पुरानी परंपरा को खत्म करके साझा बजट पेश किया। तब अरुण जेटली ने कहा था कि, अब स्थिति अलग है। केवल परंपरा के आधार पर अलग से रेल बजट पेश करने की जरूरत नहीं है। इस साल एक ही बजट होगा। इससे रेलवे की स्वायत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सरकार ये भी सुनिश्चित करेगी की हर साल रेलवे पर अलग से चर्चा की व्यवस्था हो।
2017 में बजट में रेलवे के लिए 1.3 लाख करोड़ रुपये
2017 में तात्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रेलवे के लिए बजट में 1.3 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया था। ये इंडियन रेलवे के इतिहास में सबसे ज्यादा आवंटन था। इसी साल एलान किया गया कि आईआरसीटीसी के जरिये टिकट बुकिंग में सर्विस चार्ज नहीं लिया जायेगा। इसके अगले साल यानी 1 फरवरी 2018 को रेलवे का आवंटन बढ़ाकर 1.48 लाख करोड़ कर दिया गया। रेलवे स्टेशनों में वाई-फाई और सीसीटीवी कैमरा लगाने की शुरुआत हुई।
अलग रेल बजट पेश करने वाले आखिरी रेल मंत्री सुरेश प्रभु
आखिर में एक और जरूरी जानकारी ले लीजिये। 25 फरवरी 2016 को आखिरी बार रेल बजट अलग से पेश किया गया था। उस समय रेल मंत्री रहे सुरेश प्रभु ने अलग से रेल बजट पेश किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट में रेलवे के लिए 2 लाख 48 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया है। कहा है कि अगले 3 साल में 400 वंदे भारत ट्रेन चलाई जायेंगी। शहरों में मेट्रो सिस्टम बेहतर किया जायेगा। 3 साल में 100 कार्गो टर्मिनल बनेगा। अर्बन ट्रांसपोर्ट को रेलवे से जोड़ा जायेगा।