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6 फरवरी, शहादत दिवस पर विशेष : प्रेमचंद सिन्हा, AJSU के बनने में जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता

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काशीनाथ केवट 
शहीद प्रेमचंद सिन्हा के अद्भुत साहसिक कार्यों ने एकीकृत बिहार के छात्रों को शिक्षण संस्थाओं में अराजकता के खिलाफ बड़े-बड़े आंदोलनों के लिए प्रेरित किया था। झामुमो के उदय के बाद, इसके शीर्ष नेता यह महसूस करने लगे थे कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन में छात्र-युवाओं को जोड़ने की आवश्यकता है। हालांकि नेताओं के अथक प्रयासों के बावजूद सात-आठ वर्षों तक आंदोलन की गति अपेक्षाकृत धीमी रही। इस पर झामुमो के नेताओं में चिंता बढ़ी, और कॉमरेड एके रॉय, विनोद बिहारी महतो, और शिबू सोरेन ने इस पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया।
बैठक में कुछ नेताओं ने सुझाव दिया कि छात्रों को इस आंदोलन में शामिल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी पढ़ाई में विघ्न आएगा। तब कॉमरेड एके रॉय ने तार्किक रूप से कहा कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि किसी भी देश को स्वतंत्रता दिलाने में वहाँ के विद्यार्थी और युवा ही मेरुदंड बने होते हैं। इसलिए, यदि झारखंड आंदोलन में युवा-छात्र शक्ति नहीं जुड़ी, तो इस आंदोलन को नई दिशा और गति नहीं मिल सकती। इसके बाद, "पढ़ो और लड़ो" का नारा संजीवनी की तरह फैल गया।


इस नारे को लेकर तेजतर्रार छात्र नेताओं में पटना विश्वविद्यालय के महासचिव प्रेमचंद सिन्हा, काशीनाथ केवट, सीए कुमार, मीना कुमारी आदि को जिम्मेदारी सौपी गई। इसके परिणामस्वरूप, 1980 में छात्र मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ। झामुमो विधायक कृपाशंकर चटर्जी के पटना स्थित विधायक आवास को इस संगठन का कार्यालय बनाया गया।
1980 के दशक में झारखंड अलग राज्य आंदोलन में छात्र-युवाओं को जोड़ने के लिए प्रेमचंद सिन्हा के नेतृत्व में छात्र मुक्ति मोर्चा ने जोर-शोर से काम किया। इसके परिणामस्वरूप, झारखंड आंदोलन में छात्रों और युवाओं का सक्रिय जुड़ाव हुआ, और इस पृष्ठभूमि में आगे चलकर आजसू जैसे संगठन का उदय हुआ।


शहीद प्रेमचंद सिन्हा का योगदान झारखंड अलग राज्य आंदोलन में अमिट है। वह 1980 से पटना विश्वविद्यालय के निर्वाचित महासचिव थे और साथ ही देश भर में चल रहे राष्ट्रीयता के आंदोलनों में छात्र-युवा शक्ति को जोड़ने के लिए बने छात्र मुक्ति मोर्चा (Student Liberation Front) के संस्थापक संयोजक थे। 6 फरवरी 1984 को, पटना के कंकड़बाग में आतताईयों ने प्रेमचंद सिन्हा की गोली मारकर हत्या कर दी, लेकिन उनके योगदान और बलिदान को झारखंड और भारत कभी नहीं भूल सकते।

(लेखक सामाजिक कर्यकर्ता और झारखंड आंदोलनकारी हैं, बेरमो कोयलांचल में इन दिनों सक्रिय हैं)

 

 

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