द फॉलोअप डेस्क:
पानी जीवन है। केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे जैवमंडल के लिए। तभी तो दुनिया की तमाम प्राचीन सभ्यताएं पानी के स्त्रोतों के इर्द-गिर्द ही विकसित हुई। चाहे वो सिंधु नदी के किनारे हड़प्पा सभ्यता हो या फिर मिस्त्र में नील नदी के किनारे सुमेरियन सभ्यता। आज भी, दुनिया के तमाम बड़े शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं। जीवन के लिए पानी प्राथमिक जरूरत है तभी तो कहते हैं बिन पानी सब सून लेकिन, झारखंड के गढ़वा जिला में प्रतापपुर पंचायत के प्रतापपुर गांव में पानी ही मौत बन गया है। यहां, पानी संजीवनी नहीं बल्कि धीमा जहर है। प्रतापपुर गांव में पानी प्यास से ज्यादा कीमती जिंदगियों की लौ बुझा रहा है। प्राकृतिक संकट कहें, इत्तेफाक या ईश्वरीय प्रकोप, इंसानी जीवन के लिए जरूरी पानी ही प्रतापपुर के ग्रामीणों के लिए नासूर बन गया है। हालात ऐसे हैं, न पीएं तो मरेंगे और पीये तो शर्तिया मरेंगे। संकट कितना बड़ा है कि गर्भवती महिलायें शिशु को जन्म देने से डरती हैं। कई बार शिशु जन्म लेता है और जिंदगी की नई सुबह से पहले मौत के काले साये की तरफ बढ़ने लगता है।
प्रतापपुर गांव में औसत जीवन प्रत्याशा महज 40 वर्ष
गांव में जाते ही किसी भी मकान में घुसिए। जहां तक नजरें जाएंगी, उदासी ही उदासी है। टेढ़े मेढ़े पैर, धनुष सी खींच गई पीठ, फट जाने की हद तक फूला हुआ पेट, पीलापन लिए आंखें, पीले और चटके हुए दांत और खिंचे हुए हाथ। त्रासदी भरा ये नजारा प्रतापपुर गांव की स्याह हकीकत है। इन सबका कारण पानी है। दरअसल, प्रतापपुर के पानी में फ्लोराइड नाम का खनिज है वो भी तय मानक से 5 गुना ज्यादा। फ्लोराइड की वजह से प्रतापपुर गांव में फ्लोरोसिस नाम की बीमारी ग्रामीणों को खा रही है। पीढ़ी दर पीढ़ी, ये बीमारी ग्रामीणों के लिए काल बन गई है। फ्लोरोसिस की वजह से प्रतापपुर में औसत जीवन प्रत्याशा महज 40 साल रह गई है।
प्रतापपुर गांव में मानक से 5 गुना ज्यादा फ्लोराइड
प्रतापपुर गांव में 600 की आबादी वाले मौनाहा टोला में पानी में निर्धारित मानक से 5 गुना ज्यादा फ्लोराइड है। इस गांव का तकरीबन हर आदमी फ्लोरोसिस से पीड़ित है। किसी के पैर मुड़े हैं तो किसी का हाथ टेढ़ा है। किसी के दांत पीले होकर गिर रहे हैं तो किसी की आंखें कमजोर है। ग्रामीणों का दावा है कि पिछले 10 वर्षों में इस टोले के 36 लोगों ने फ्लोरोसिस की वजह से जान गंवा दी। गढ़वा जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर प्रतापपुर गांव के मौनाहा टोला में फ्लोराइड युक्त पानी की वजह से 36 लोगों की मौत हो गई। 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से बीमार हैं। उनकी बीमारी लाइलाज है। ग्रामीण बताते हैं कि वर्ष 1998 में पहली बार ग्रामीणों को पता चला था कि वे फ्लोराइडयुक्त पानी पी रहे हैं। उनको फ्लोरोसिस नाम की बीमारी हो रही है जो लाइलाज है।
दरअसल, वर्ष 1997-98 में मौनाहा टोले में लोग अजीब हेल्थ प्रॉब्लम से जूझने लगे। उनके हाथ पैर मुड़ने लगे। हड्डियां गलने लगीं। दांत पीले होकर झड़ने लगे। कुछ लोगों की समस्या इतनी गंभीर थी कि वे चलने फिरने में भी असमर्थ हो गये। डॉक्टर के पास गये तो पता चला उन्हें फ्लोरोसिस है। भूजल की जांच हुई तो पता चला उसमें फ्लोराइड की मात्रा 5.92 मिलीग्राम प्रति लीटर है जो निर्धारित मानक से 4 गुना ज्यादा थी। बाद में ये 7.85 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गई। ये 5 गुना ज्यादा है।
फ्लोरोसिस की वजह से गर्भ में दिव्यांग हो रहे बच्चे
मौनाहा टोले के रामसेवक फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं। उनके हाथ और पैर बुरी तरह से मुड़ गये हैं। सामान्य दिनचर्या के लिए उनको दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। इसी टोले की जीवबसिया दिन-रात बिस्तर पर पड़ी रहती है। गांव की शिवपतिया महज 40 साल की उम्र में चल बसीं। हालात इतने खराब हैं कि फ्लोराइड की वजह से शिशु गर्भ में ही दिव्यांग हो जाते हैं। बच्चे, दिव्यांग पैदा हो रहे हैं। स्वस्थ बच्चा जन्मा भी तो कुछ ही महीनों में फ्लोरोसिस का शिकार हो जाता है। हैरानी की बात है कि इंसानी जिंदगी और मौत से जुड़े इतने गंभीर मसले पर कभी किसी जनप्रतिनिधि ने ध्यान नहीं दिया। जैसा चल रहा चलने दिया।
झारखंड सहित इन राज्यों में भी फ्लोरोसिस की समस्या
फ्लोराइड वाला पानी और फ्लोरोसिस बीमारी, केवल गढ़वा के प्रतापपुर की समस्या नहीं है बल्कि झारखंड, बिहार, असम और यूपी के गांवों में तकरीबन 78 लाख से ज्यादा आबादी फ्लोराइड युक्त पानी पी रही है। झारखंड में गढ़वा और पलामू जिले में फ्लोरोसिस बीमारी की समस्या विकराल होती जा रही है। साल 2002 तक देश के 17 राज्यों में फ्लोरोसिस की समस्या थी। अब भी 19 राज्यों के 219 जिलों में डेढ़ लाख से ज्यादा गांव फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। साढ़े 6 करोड़ लोग फ्लोरोसिस से जूझ रहे हैं। 14 साल या इससे कम उम्र के 60 लाख बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस से पीड़ित है। इतनी बड़ी स्वास्थ्य आपदा यदि मेनस्ट्रीम मुद्दा नहीं है तो फिर समझ लीजिए कि आयुष्मान का वादा कितनी गारंटी वाला है। वोट देने जाइयेगा तो सोचिएगा।