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गौरैया को बिहार (Bihar) की राजकीय पक्षी कहा जाता है। एक समय था जब गौरैया बिहार के हर घर की सदस्य मानी जाती था। लेकिन अभी के दौर में यह विलुप्त होने की स्थिति में है। शहरों और गावों में कोई जगह नहीं बची है जहां आपको गौरैया की झुंड देखने को मिल जाए। इन सब जगहों से अलग बिहार में एक ऐसा गांव है जिसने इन पक्षियों के संरक्षण की जिम्मेदारी ली है। दरअसल, बिहारशरीफ प्रखंड के सुदूर इलाके में बसा एक गांव तेतरवां है। जहां वर्ष 2010 से संरक्षण का कार्य किया जा रहा है।
महज 8-10 गौरैये से हुई थी शुरूआत
बिहारशरीफ के तेतरवां गांव में रहने वाले राजीव रंजन पांडे पिछले 12 साल से गौरैया संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। केवल गौरैया ही नहीं कौवा, मैना, सनबर्ड, चुहचुही, उल्लू, गोल्डेन, पिलख, कोयल, महालता,बाज जैसे अनेक पक्षियों को संरक्षण दिया जाता है। साल 2010 में गौरैया की आबादी महज 8-10 थी। जिसके बाद उन्होंने गांव के हर घर में पंछी को रहने के लिए घोंसला बनवा कर घरों में टंगवा चुके हैं। साथ ही साथ उसके भोजन पानी का भी नियमित ख्याल रख रहे हैं।
पूरे गांव में गौरैया की आबादी 1,500 के पार
इसके बाद गांव वालों के सहयोग से पक्षियों के लिए वक्त पर दाना-पानी की व्यवस्था की। इसके कारण गौरैया की आबादी में वृद्धि होने लगी। वर्ष 2020 तक इसकी संख्या 700 के पार कर गई और पूरे गांव में 1,500 के पार कर गई। तब से इसको एक अभियान का रूप देकर आम लोगों को जोड़ा और एक गौरैया विहग फाउंडेशन बनाया।
पर्यावरण शुद्धता का सूचक है गौरैया
राजीव आगे बताते है कि गौरैया पर्यावरण शुद्धता का सूचक है। मानव के साथ इसका जुड़ाव करीब 10 हज़ार वर्षों से है। लेकिन लक्ष्य विहीन विकास के कारण दुनियां भर में इसकी आबादी में 60 से 80 फीसदी तक गिरावट आ गई है। इसके लिए सरकारी और सामाजिक स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। इस दिशा में उनकी संस्था देशभर में सकारात्मक कार्य रही है।