द फॉलोअप डेस्क
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता के लिए होने वाली बैठक की तैयारी में लगे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 23 जून को बिहार में होने वाली बैठक बहुत ही अहम मानी जा रही है। लेकिन इस बीच 13 जून को महागठबंधन में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे व नीतीश कैबिनेट में अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण मंत्री डॉ. संतोष सुमन ने इस्तीफा देकर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी। संतोष ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) का विलय नीतीश कुमार अपनी पार्टी जदयू में करना चाहते थे। ऐसे में अस्तित्व बचाने के लिए इस्तीफा दिया। लेकिन अब जो खबर निकल कर आ रही है वह ज्यादा चौंकाने वाली है। डॉ. सुमन ने इस्तीफा दिया नहीं, बल्कि उनसे लिया गया है। इसकी पुष्टि बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने खुद की है। नीतीश ने कहा कि संतोष सुमन मुखबिरी का काम कर रहे थे। महागठबंधन से संबंधित होने वाली बैठक की गुप्त जानकारी भाजपा तक पहुंचा रहे थे। इतना ही नहीं संतोष सुमन 23 जून को मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले थे। इस्तीफा दे कर उस दिन की होने वाली महागठबंधन की बैठक के पूरे स्वरूप को खराब करने और उसके मैसेज को लोगों तक न पहुंचने देने के लिए यह बड़ा दांव जीतन राम मांझी ने खेलना चाहा था। इन्ही कारणों से उन्होंने ने विजय चौधरी को निर्देश देते हुए मंत्री संतोष सुमन का इस्तीफा ले लिया।
मांझी का भाजपा से लगावा जदयू को नहीं भाया
जीतन राम मांझी 5 सीटों की मांग कर रहे थे। बताया जा रहा है कि यह बात महागठबंधन के नेताओं को खटक रही थी। वहीं, मांझी का विपक्षी एकजुटता पर खासा दिलचस्पी न दिखाने से भी जदयू आलाकमान चिंतित थे। इसके अलावा अपने क्षेत्र के विकास के लिए केंद्रीय नेता अमित शाह से मिलना, कई सवालिया निशान खड़े कर रहा था। ऐसे में जदयू लगातार मांझी पर अपनी नजर रख रही थी। यह जानने के लिए की आखिर मांझी यह सब किसके इशारे पर कर रहे थे। जदयू को जब यह पता चला की मांझी एक बड़े षड्यंत्र में शामिल हैं। जिसे ध्यान में रख कर नीतीश कुमार ने संतोष सुमन का इस्तीफा लेना बेहतर समझा।
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