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ऑनलाइन जमाबंदी रजिस्टर नहीं हो पाए डिजिटल, अब रैयतों को हो रही ये परेशानी 

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द फॉलोअप डेस्क 

बिहार में ऑनलाइन जमाबंदी रजिस्टर (रजिस्टर-2) को डिजिटल करने का काम अभी भी अधूरा है। राज्य के कई मौजा में बड़ी संख्या में रैयतों की जमीन का ब्योरा ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है, जिससे लोग अपनी जमीन की जानकारी लेने और जमाबंदी रजिस्टर की पुष्टि के लिए अंचल कार्यालयों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं।
सरकार ने दावा किया था कि ऑनलाइन जमाबंदी व्यवस्था से रैयतों को घर बैठे अपनी जमीन की जानकारी मिल जाएगी, लेकिन जब लोग पोर्टल पर अपनी जमीन का ब्योरा खोजते हैं, तो उनका रिकॉर्ड गायब मिलता है। इसके कारण उन्हें मजबूरन अंचल कार्यालय जाना पड़ता है, जहां भी समाधान नहीं मिलता और अधिकारी टालमटोल करते हैं। जब लोग बताते हैं कि उनकी जमीन का ब्योरा ऑनलाइन नहीं दिख रहा है, तो उन्हें यही जवाब मिलता है कि "कुछ दिनों में दिखने लगेगा।"
पहले जब ऑनलाइन जमाबंदी व्यवस्था ठीक से काम कर रही थी, तो पुराने जमीन मालिकों के वंशजों को अपनी पुश्तैनी जमीन का रिकॉर्ड ढूंढने में आसानी होती थी। इसके अलावा, जो लोग अपने गांव या शहर से दूर रहते थे, वे भी अपने कागजात ऑनलाइन देख सकते थे। लेकिन अब अधूरे डिजिटलीकरण के कारण लोग फिर से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर हो रहे हैं।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने सभी मौजा की जमाबंदी को पूरी तरह से डिजिटल करने और गलत दर्ज विवरण को सही करने के लिए विशेष अभियान शुरू किया है। इसकी डेडलाइन 15 मार्च, 2025 तय की गई है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रशासन तय समय में यह काम पूरा कर पाएगा? क्योंकि अभी तक हजारों रैयतों का रिकॉर्ड अधूरा है और कई मामलों में गलत जानकारी दर्ज है।
राजस्व विभाग ने अपने-अपने क्षेत्र के सभी मौजा के अभिलेखों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी हल्का कर्मचारियों को दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह काम सुचारू रूप से हो रहा है? कई मामलों में गलत अभिलेख दर्ज होने के बाद भी सुधार नहीं किया गया है। लोगों को अपनी जमीन के मूल दस्तावेज लेकर भी कई बार अधिकारियों के पास जाना पड़ रहा है।
रैयतों की 5 बड़ी समस्याएं:
1.    ऑनलाइन पोर्टल पर जमीन का ब्योरा उपलब्ध नहीं है।
2.    अधिकारी टालमटोल कर रहे हैं।
3.    गलत जानकारी दर्ज होने से विवाद बढ़ रहे हैं।
4.    डिजिटलीकरण का काम धीमी गति से चल रहा है।
5.    रैयतों को अपनी ही जमीन की पुष्टि के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ रहा है।
 

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