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कपड़ों की जगह किताबें खरीदी, रोज 8 घंटे की मेहनत; BPSC पास कर अफसर बनीं कोडरमा की नूर फातमा

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द फॉलोअप डेस्क
68वीं BPSC में झारखंड की नूर फातमा ने भी सफलता हासिल की है। नूर कोडरमा जिले की रहने वाली है। उन्होंने परीक्षा में 221 रैंक प्राप्त कर समाज कल्याण विभाग में प्रखंड कल्याण पदाधिकारी बनने का गौरव हासिल किया है। शादी के करीब 7 साल के बाद बिहार लोक सेवा आयोग में सफलता प्राप्त करने वाली नूर फातिमा के संघर्ष की कहानी युवाओं को प्रेरित करने वाली है। नूर ने पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों को निभाते हुए प्रतिदिन 8 घंटे पढ़ाई की। वहीं संसाधनों की कमी होने के कारण नूर ने त्योहारों में कपड़ों की खरीदारी नहीं की बल्कि इन पैसे से किताबों की खरीददारी पर जोर दिया। गौरतलब है कि बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा 15 जनवरी को 68वीं BPSC का फाइनल रिजल्ट जारी किया गया।  परीक्षा में 322 कुल अभ्यर्थी सफल हुए।


तैयारी के दौरान खुद को सोशल मीडिया से रखा दूर 
नूत बताती है कि वह BPSC की तैयारी कर रही थी इसी बीच साल 2016 में उनकी शादी हो गई। शादी के बाद 3 वर्षों तक पढ़ाई से ब्रेक लग गया। जिसके बाद 2019 से उन्होंने दोबारा सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी शुरू की। तैयारी के दौरान नूर को 66वीं और 67वीं बीपीएससी की परीक्षा में असफलता हाथ लगी। जहां आज कल के युवा एक असफलता से हतास होकर अपनी तैयारी छोड़ देती है वहीं नूर ने अपनी कोशिश जारी रखी। जिसका परिणाम उन्हें 68वीं बीपीएससी परीक्षा में मिला। नूर फातिमा ने बताया कि पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों को निभाते हुए प्रतिदिन वह 8 घंटे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती थी। तैयारी के दौरान उन्होंने खुद को सोशल मीडिया से दूर रखा। घर पर संसाधनों की कमी होने पर उन्होंने कपड़ों की खरीदारी कम कर किताबों की खरीददारी पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि अब आगे नौकरी के साथ यूपीएससी की तैयारी भी उनकी जारी रहेगी।\


बचपन से बच्चों को सिविल सेवा में जाने के लिए प्रेरित किया- नूर के पिता
नूर फातिमा के पिता बदरूउद्दीन बेटी की सफतला से काफी खुश हैं। वह रामगढ़ डीसी कार्यालय से रिटायर हुए हैं। वह कहते  हैं कि लोग लगातार बधाई देने के लिए घर पर पहुंच रहे हैं। नूर ने पिता ने कहा कि वे कोडरमा के जयनगर प्रखंड में भी कई वर्षों तक नाजीर के रूप में रहे। इसके कारण अधिकारियों के बीच रहते थे। यहीं से बच्चों में अधिकारी बनाने की बात ठानी। अकसर अपने बेटे- बेटियों को अधिकारियों के समाज में प्रतिष्ठा और उनकी जीवनशैली का उदाहरण देकर सिविल सेवा में जाने के लिए प्रेरित करता रहा। आज मेरे सपने को मेरी बेटी ने पूरा कर मुझे गौरवान्वित किया है। 

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