पटनाः
बिहार में जहां एक तरफ सरकार आये दिन विकास के बड़े-बड़े दावे करती है। वहीं दूसरी तरफ राज्य की शिक्षा प्रणाली सरकार की पोल खोलते दिख रही है। यह बात तो सबको पता है कि सरकारी स्कूलों में अधिकांश गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चे ही पढ़ते हैं। सत्र 2018-19 से बच्चों को किताब खरीदने के लिए राशि खाते में दी जा रही है। ऐसे में कभी राशि समय पर बच्चों के खाते में नहीं भेजी जाती है तो कभी किताब हर जगह उपलब्ध नहीं होती है। नतीजतन बिहार के सरकारी स्कूल के 1 करोड़ 10 लाख बच्चों के पास किताबें नहीं है। 71 हजार प्राइमरी स्कूलों के क्लास पहली से आठवीं तक के 1.67 करोड़ बच्चों में 1.10 करोड़ से ज्यादा बच्चे बिना किताब ही स्कूल जा रहे।
शिक्षा का अधिकार कानून क्या कहता है
शिक्षा का अधिकार कानून (आईटीई) के तहत कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को किताब खरीदने के लिए राशि दी जाती है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत किताबों के लिए केंद्र सरकार 60 प्रतिशत और राज्य सरकार 40 प्रतिशत राशि देती है। इस साल बच्चों को किताब के लिए 520 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है। डीबीटी के माध्यम से बच्चों के बैंक खाता में राशि भेजने राशि उपलब्ध है। बता दें कि कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को 250 रूपय तो कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को 400 रूपय किताब के लिए दी जाती है। बिहार टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन (बीटीबीसी) ने किताब छपाई के लिए 56 निजी पुस्तक प्रकाशकों को जिम्मेदारी दी है।
कोरोना के कारण स्कूल बंद रहने से कम बच्चों ने खरीदी किताब
एक प्रकाशक के अनुसार पिछले दो सत्र 2020-21 और 2021-22 में कोरोना के कारण स्कूल बंद रहने से 20 प्रतिशत बच्चों ने ही किताबें खरीदी। लेकिन इस बार ऐसी कोई स्थति नहीं है इसलिए उम्मीद है कि इस सत्र में किताब की बिकीं बढ़े।