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एक्सक्लूसिव : भारतीय जनतंत्र मोर्चा के रहते जदयू में क्यों गए सरयू राय?

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दयानंद राय
झारखंड के कद्दावर नेताओं में से एक सरयू राय जदयू के हो चुके हैं। 4 अगस्त को उन्होंने पटना में जदयू की सदस्यता ली। उनके जदयू में आने से जहां पार्टी को बैठे-बिठाए राज्य में एक विधायक मिल गया है वहीं झारखंड में जदयू के पुनर्जीवित होने की संभावनाएं भी प्रबल होने लगी हैं। पर इसके साथ ही सवाल भी उठने लगे हैं। पहला सवाल तो ये है कि भारतीय जनतंत्र मोर्चा यानि भाजमो जिसके संरक्षक वे हैं के रहते सरयू राय ने जदयू क्यों ज्वाइन की और दूसरा यदि नीतीश कुमार के आमंत्रण पर उन्होंने जदयू ज्वाइन की तो उनके सदस्यता ग्रहण कार्यक्रम से नीतीश कुमार क्यों गायब रहे। वहीं, तीसरा सवाल ये है कि ठीक विधानसभा चुनावों से पहले वे जदयू में क्यों गये। 
आइए, अब इन सवालों के जवाब एक-एक कर ढूंढते हैं। पहले सवाल का जवाब ये है कि ये सही बात है कि भाजमो के नाम पर सरयू राय के पास एक पार्टी तो थी पर उसका सियासी वजूद बेहद कमजोर था। झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी असरहीन थी। उसका न मजबूत संगठन था न कद्दावर नेता और कार्यकर्ता। 2024 के लोकसभा चुनाव में वे भाजमो का प्रदर्शन देख चुके थे, ऐसे में उन्हें एक मजबूत और पुरानी पार्टी का साथ चाहिए था। कांग्रेस में वे जा नहीं सकते थे और भाजपा में उनकी इंट्री बंद थी ऐसे में जदयू उन्हें अपने लिए मुफीद पॉलिटिकल प्लेटफार्म लगा।

झारखंड में खीरू महतो को छोड़कर पार्टी के पास कोई मजबूत नेता नहीं है, ऐसे में जदयू को भी राज्य में फिर से उभरने के लिए सरयू राय जैसे लीडर की जरूरत थी। यानि सरयू राय के जदयू में आने से जदयू को भी फायदा हुआ है और सरयू राय भी फायदे में है। कमजोर ही सही पर जदयू का राज्य में संगठन है और कार्यकर्ता भी हैं।
दूसरे सवाल का जवाब ये है कि नीतीश कुमार सरयू राय के ज्वाइनिंग कार्यक्रम से इसलिए गायब रहे क्योंकि वे सरयू राय की इंट्री पार्टी में तो चाहते थे पर खुद उस कार्यक्रम में नहीं रहना चाहते थे। वे एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं और राजनीति के जानकारों का कहना है कि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह रघुवर दास से उनके कटु संबंधों के कारण उन्हें पसंद नहीं करते। इसलिए नीतीश कुमार उस कार्यक्रम में शामिल होकर मोदी-शाह की नजर में चढ़ना नहीं चाहते थे। 
तीसरा सवाल कि वे ऐन विधानसभा चुनावों के पहले भाजपा में क्यों गए, इसका जवाब ये है कि सरयू राय जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ना चाहते हैं। जमशेदपुर पश्चिमी उनका गढ़ रहा है और जमशेदपुर पूर्वी में वे खुद को मजबूत करना चाहते हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने यहां से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को निर्दलीय चुनाव के मैदान में हराया था। उस समय परिस्थितियां अलग थी। एक तो क्षेत्र में रघुवर दास के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी, दूसरा झारखंड के कई दलों का समर्थन भी उनके साथ था। तब भी निर्दलीय चुनाव लड़ने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। तो एक तो क्षेत्र में 2019 जैसी परिस्थितियां नहीं हैं और दूसरा सरयू राय एक ऐसी पार्टी का साथ चाहते थे जहां उनकी राय को महत्व दिया जाए और उस पार्टी का कमजोर ही सही संगठन और कार्यकर्ता हों। जदयू राज्य की पुरानी पार्टी है और उसका राज्य में संगठन है। चुनावों से पहले एक मजबूत पार्टी का साथ मिल जाने से जहां उनके लिए चुनाव में कांटेस्ट करना आसान हो जायेगा, वहीं जदयू का सिंबल साथ हो जाने से उनकी जीत की संभावनाएं भी प्रबल हो जायेंगी। 


वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी कहते हैं कि अपनी पार्टी के रहते सरयू राय ने जदयू की सदस्यता इसलिए ली क्योंकि एक मजबूत राजनीतिक प्लेटफार्म के बैनर तले वे 2024 का विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। क्षेत्र में दुबारा निर्दलीय चुनाव लड़ना उनके लिए मुश्किल था। सरयू राय चुनाव में भाजपा का समर्थन चाहते हैं और जदयू के एनडीए फोल्डर में होने के कारण बहुत संभव है कि उन्हें भाजपा का समर्थन मिल जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि उनके जदयू में जाने से सिर्फ सरयू राय को फायदा हुआ है। इससे जदयू को भी फायदा मिला है। जदयू को राज्य में एक कद्दावर चेहरा मिल गया है। अकेले खीरू महतो से राज्य में पार्टी संभल नहीं रही थी। सरयू राय के आने से पार्टी को कई अन्य सीटों पर भी भी बारगेन करना पावर मिलेगा। 
2006 में 6 सीटों पर जीती थी जदयू
जदयू राज्य में कभी भी प्रभावशाली नहीं रहा। झारखंड के गठन के बाद से ही पार्टी इस राज्य में अपनी सियासी जमीन तलाश रही है। 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली थी। 2009 में पार्टी ने 14 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 2 पर जीत हासिल हुई। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर लड़ी और खाता तक नहीं खुला। 2019 में पार्टी सर्वाधिक 49 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। इतना ही नहीं वोट प्रतिशत भी 1 फीसदी से गिरकर 0.7 फीसदी पर पहुंच गया था।
30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी भाजमो
भाजमो के अध्यक्ष धर्मेंद्र तिवारी ने बताया कि भारतीय जनतंत्र मोर्चा ने राज्य में 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है। उन्होंने कहा कि सरयू राय हमारी पार्टी के संरक्षक थे। अब वे जदयू में चले गये हैं पर अभी हमारी पार्टी का विलय जदयू में नहीं हुआ है। गौरतलब है कि भारतीय जनतंत्र मोर्चा की स्थापना 15 मार्च 2021 को की गयी थी। 


 

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