द फॉलोअप डेस्क
एक युवक झारखंड आकर 5000 रुपये देकर दिव्यांगता का सर्टिफिकेट बनवा लेता है और फिर इसी के आधार पर उसे बिहार में नौकरी मिल जाती है। जामताड़ा के एक युवक ने ये शिकायत की है। दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार एक युवक ने कहा है कि उसके साथ 15 लोगों का चयन टीआरई-2.0 में हुआ है। आरोप है कि इन सभी ने 5000 रुपए देकर दिव्यांगता का नकली सर्टिफिकेट बनवा लिया है। इन सबकी पोस्टिंग बांका और गया जिले में की गयी है। कहा है कि ये सभी लोग शारीरिक रूप से फिट हैं।
धनबाद के शिक्षक ने किया मामले का पर्दाफाश
धनंजय पांडेय की इस रिपोर्ट के मुताबिक दरभंगा में नियुक्त एक शिक्षक ने ये पर्दाफाश किया है। दरअसल, वो ये जानने का प्रयास कर रहा था कि दूसरे राज्यों के दिव्यांग अभ्यर्थियों को बाहर करने के लिए कोर्ट में जो मामला चल रहा है, उसकी प्रोग्रेस क्या है। इस युवक ने यह भी जानकारी दी है कि टीआरई-3.0 में भी कई युवकों ने फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर आवेदन किया है। गौरतलब है कि बिहार लोकसेवा आयोग ने 10 जुलाई को जन सूचना अधिकार के तहत एक अभ्यर्थी को जानकारी दी है कि टीआरई-2.0 में वर्ग 9-10 के हिंदी विषय में दिव्यांग के आरक्षण के आधार पर 43 अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। इसमें बिहार से 5 पुरुष और 3 महिलाएं हैं। बाकी, चयनित 28 पुरुष और 7 महिला अभ्यर्थी अन्य राज्यों से हैं।
43 में केवल 8 दिव्यांग अभ्यर्थी बिहार के निवासी
दूसरे शब्दों में, 43 में केवल 8 दिव्यांग अभ्यर्थी ही बिहार के निवासी हैं। वहीं, 26 जुलाई को एक अन्य अभ्यर्थी को दी गई जानकारी में आयोग ने बताया है कि टीआरई-2.0 में वर्ग 6-8 में अनारक्षित वर्ग के 1375 अभ्यर्थियों का चयन किया गया है, जिसमें 1135 अन्य राज्यों के निवासी हैं। युवकों का कहना है कि फर्जी तरीके से दिव्यांगता और डोमेसाइल प्रमाणपत्र बनाकर दूसरे राज्य के लोगों ने शिक्षक की नौकरी हासिल कर ली है। कहा है कि पहले और दूसरे चरण की परीक्षा में बड़े पैमाने पर घपला किया गया है। इसकी जांच होनी चाहिये।